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एक ग़ज़ल- दिल को लगते बहुत भले हो

मापनी २२ २२ २२ २२

 

सुबह के’ मंजर से उजले हो,

दिल को लगते बहुत भले हो.

 

एक नजर देखा है जब से,

सपने जैसा दिल में’ पले हो.

 

सारी दुनिया जान गयी है,

तुम तो नहले पर दहले हो

 

पल पल धूप सही है हमने,

और पले तुम छाँव तले हो.

 

ताप  सहा हमने दर्दों का,    

मोम सरीखे तुम पिघले हो.

 

जिनको भी चाहा दुनिया में,

उनमें तुम सबसे पहले हो.

जम कर बैठ गए हो दिल में,

पल भर को भी कब निकले हो

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 2, 2017 at 10:40am

आदरणीय  Ram Awadh VIshwakarma  जी ,आपकी हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दिल से 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 2, 2017 at 10:40am

आदरणीय  ajay sharma जी ,आपकी हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दिल से 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 2, 2017 at 10:39am

आदरणीय  ajay sharma जी ,आपकी हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दिल से 

Comment by Samar kabeer on September 1, 2017 at 3:46pm
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन क़ाफिये सही नहीं हैं,'उजले'के साथ 'भले',देखियेगा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on September 1, 2017 at 11:09am
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on September 1, 2017 at 9:20am
खूबसूरत गधज़ल बधाई
Comment by ajay sharma on August 31, 2017 at 10:48pm

जिनको भी चाहा दुनिया में,
उनमें तुम सबसे पहले हो.......WAH WAH

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