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हमारे ग़म का उसको क्या कभी अंदाज होता है।
हमारी राह में कांटे जो वो हरबार बोता है।
कभी रूठे अगर जो हम तो ये भी याद रखना तू,
न फिर पायेगा हमको तू अगर इस बार खोता है।
बता इस ग़म का तुझपर क्यों नहीं कोई असर होता,
तू हर दम मुस्कुराता है हमारा दिल जो रोता है।
झमेले ज़िन्दगी के मुश्किलों से झेलते हैं हम,
अकेले जूझते हैं हम उधर उधर वो खूब सोता है।
अजब अपनी कहानी है रहे हैं हम निथरते ही,
बरसती आँख का सावन बहुत 'मन' को भिगोता है।
मंजूषा मन
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. मंजूषा जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. मेरे हिसाब से चौथे शेर के सानी मिसरे और बेहतर करने की आवश्यकता है. सादर.
खूबसूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ
आदरणीया मंजूषा जी , खूबसूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
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