For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ठिकाना (लघुकथा)राहिला

हुलिए से वह बूढ़ा कोई भिखारी जान पड़ रहा था। अलसुबह मंडी लगते ही हाथ में एक मैली कुचैली सी प्लास्टिक की बोरी लिये वह एक ठेले वाले के पास पहुँचा| आदतन फलवाले ने उसकी तरफ एक छोटा सा आम बढ़ा दिया।
उम्मीद से परे बूढ़े ने सिर हिलाकर उसे लेने से इंकार कर दिया और एक तरफ छाँटकर रखे सड़े आमों की ओर इशारा किया। दुकानदार ने उसे हैरानी से देखा और इस बार एक बड़ा आम उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा "अरे बाबा! वे आम तो सड़े हुए हैं ,उन्हें खाओगे तो बीमार पड़ जाओगे।
बूढ़े ने इस बार भी इंकार में सिर हिला दिया| अब एक गूंगे के इशारे वाचने जितना समय नहीं था दुकानदार के पास।
लिहाजा उसने भाड़ में जाने वाले अंदाज में सारे सड़े फल उठा कर बूढ़े को देते हुए कहा "ले बाबा ! ले जा ,सारे ले जा।"
अपने मन की होते देख बूढ़े की झुर्रियों से ढकीं आंखे मुस्कुराहट के कारण एकदम से गायब सी हो गई।

अब बारी -बारी कई दुकानदारों से सड़े हुए फल लेकर बूढ़े ने भरी हुई बोरी को कंधे पर टाँग लिया| सामने से आ रहे ऑटो रिक्शा के नजदीक आते ही उसने हाथ के इशारे से रोका| चालक के कुछ पूछने से पहले ही बूढ़े ने उसमें बोरा रखकर चलने का इशारा किया| फिर बूढ़ा रास्ता दिखता गया, ऑटो वाला चलता गया।

शहर से काफी दूर आने पर चालक ने पलटकर पूछा 'बाबा आगे तो दस पन्द्रह किलोमीटर दूर कोई गाँव ही नहीं हैं।आपको जाना कहाँ है?"उसकी व्याकुलता देख ,बूढ़े ने उसे फिर इशारे से तसल्ली दी।
यह नई सड़क थी, जो कुछ महीनों पहले ही एक योजना के तहत बनाई गयी थी।
तभी बूढ़े ने ऑटो वाले की पीठ थपथपा कर ऑटो धीमा चलाने को कहा और बोरी में हाथ डालकर सड़े फलों को सड़क के दोनों किनारों पर दम से फेंकने लगा
"अरे -अरे पगला गए क्या?"ऑटो वाले ने चिल्लाते हुए झटके से ऑटो रोक दिया।
अब बूढ़ा पहली बार धीरे से बोला "चले चलो भाई !अभी बहुत से बीज बिखेरने हैं।"
ऑटो वाला उसे बोलता देख बुरी तरह चौंक गया और बोला
"आप बोल सकते हो तो पहले सब बात इशारे से क्यों ?" जवाब में बूढ़ा काँपती हुई आवाज़ में बोला "बेटा जो बात इशारे में बन गई वह बोलने से ढेरों सवाल उठाती।अब इतना तो समझ गए हो कि मैं क्या कर रहा हूँ।तो चले चलो भाई!"
नई सड़क की बलि चढ़े हजारों वृक्षों के कब्रिस्तान को आबाद करने के लिए बूढ़ा फिर से बीजों को उनके सही ठिकाने पर पहुंचाने लगा।


मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 662

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 23, 2017 at 9:00am

कमाल  कमाल  आपकी इस उर्वर सोच का और क्या शानदार प्रस्तुति , बहुत बहुत बधाई

Comment by Rahila on July 22, 2017 at 11:26am
शुक्रिया आद.दीदी!सादर
Comment by Nita Kasar on July 21, 2017 at 9:17pm
सारगर्भित संदेशप्रद कथा है,आज की ही नही अपने कल की व्यवस्था करना ज़रूरी है ।जिससे आने वाली पीढ़ी के लिये उदाहरण सामने हो ।बधाई आद० राहिला जी ।
Comment by Rahila on July 21, 2017 at 6:01pm
शुक्रिया आ. दिदिया!
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 18, 2017 at 8:14pm

वाह यह निराली कोशिश पसंद आई आदरणीया राहिला जी | अच्छी तरकीब हुई यह तो पेड़ लगाने की | हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Monday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-169

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर "
Monday
Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
Sunday
Sushil Sarna posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service