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जंगल आजाद हुआ।पशु-पक्षियों को शासन की कमान मिली।आदमी काफी दूर निकल चुके थे। नृत्य-कला की प्रवीणता से मोर को सबसे बड़ी कुर्सी मिली।विभिन्न जानवरों और परिंदों को मंत्री पद मिले।लक्ष्मी जी की सवारी को वित्त का जिम्मा सौंपा गया।खान-पान के सामान और महंगे हो गये।लूट तरक्की का सामान बन गयी।छोटे-छोटे जीवों की बचत बड़े-बड़े दिग्गज जानवर गटकने लगे।माद्दा होता कर्ज लेने का,फिर सारी राशि हड़प जाने का।उधर सरकारी ऐलान होता कि तिजोरी खाली है,जनता सरकार का का सहयोग करे।खर्च कम करे,कर चुकाये।उधर जंगल(देश-जनता) की सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं कर पा रहा था,अनुपार्जक की श्रेणी में शुमार हूँ चुका था।गीदड़,गिरगिट और बगुला आपस में बातें कर रहे थे।गीदड़ बोला,
-अपुन तो गीदड़भभकी से ही काम निकाल लिया करते थे।
-हाँ,क्यूँ नहीं?',गिरगिट बोला-
-अब तो मैं भी रंग बदलना भूल गया हूँ।
अब सत्ता वाले ही रंग बदलू हो चुके हैं।
-बगुलाभगत भी अभी कम नहीं हैं।मैं तो महज बगुला हूँ', बगुले ने अपनी व्यथा जाहिर की।
-हाहाहा', गीदड़ ने चतुराई की चर्चा छेड़ दी---
-अरे भाई अक्ल का अंधा शिक्षा-दीक्षा का काम संभालेगा,तो आखिर क्या होगा?
-और उल्लू खजाने की चाभी लेकर घूमेगा तब?',बगुले ने चुटकी ली।
-चलो भाइयो!रंग बदलने से मैं तो बच गया', गिरगिट ने राहत की साँस ली।
'मौलिक व अप्रकाशित'

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Comment by Manan Kumar singh on July 2, 2017 at 11:51am
बहुत बहुत आभार आदरणीय आरिफ भाई।
Comment by Mohammed Arif on July 2, 2017 at 7:51am
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब, अच्छी कटाक्षपूर्ण लघुकथा । सबकुछ इशारों में बतला दिया आपने । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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