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ग़ज़ल : भइ, आप हैं मालिक तो कहाँ आपसे तुलना

२२१ १२२१ १२२१ १२२ 

 

पिस्तौल-तमंचे से ज़बर ईद मुबारक़ 

इन्सान पे रहमत का असर, ईद मुबारक़
 
पास आए मेरे और जो ’आदाब’ सुना मैं
मेरे लिए अब आठों पहर ईद मुबारक़
 
हर वक़्त निग़ाहें टिकी रहती हैं उसी दर
पर्दे में उधर चाँद, इधर ईद मुबारक़ !
 
जिस दौर में इन्सान को इन्सान डराये
उस दौर में बनती है ख़बर, ’ईद मुबारक़’ !
 
इन्सान की इज़्ज़त भी न इन्सान करे तो
फिर कैसे कहे कोई अधर ईद मुबारक़ ?
 
जब धान उगा कर मिले सल्फ़ास की पुड़िया
समझो अभी रमज़ान है, पर ईद मुबारक़ !
 
भइ, आप हैं मालिक तो कहाँ आपसे तुलना
कह उठती है रह-रह के कमर.. ईद मुबारक़ !
 
तू ढीठ है बहका हुआ, मालूम है, लेकिन
सुन प्यार से.. बकवास न कर.. ’ईद मुबारक़’ ! 

  

जो बीत गयी रात थी, ’सौरभ’ उठो फिर से
कहती है ये ख़ुशियों की सहर, ईद मुबारक
*****************
-सौरभ

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Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2017 at 11:33am

भाई पंकज जी आपसे मिली प्रशंसा का मैं तहेदिल से स्वागत करता हूँ. ये मेरे लेखन को और भावमय करेगी. हार्दिक धन्यवाद, भाई. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2017 at 11:32am

अदरणीय बसंत शर्माजी, आपकी सदाशयता से पूरी तरफ़ से वाकिफ़ हैं और जबलपुर की वो शाम तो बार-बार मस्तिष्क में कौंध जाती है, जब आप और समस्त सुधीजनों के सान्निध्य में हम भाव विभोर हुए थे. इस प्रस्तुति को भाव दे कर आपने जिस तरह से मेरा उत्साहवर्द्धन किया है, उस हेतु आभार. 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2017 at 11:29am

भाई रामबली जी, आपसे मिला अनुमोदन वाकई ऊर्जस्वी रखता है. हार्दिक धन्यवाद .. 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on June 26, 2017 at 10:36am
वाहहह आ0 सौरभ जी ईद के पावन मौके पर क्या जानदार ग़ज़ल कही है। एक एक शेर लाजबाब।
शेर दर शेर दाद हाजिर है।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 25, 2017 at 11:18pm

पिस्तौल-तमंचे से ज़बर ईद मुबारक़
इन्सान पे रहमत का असर, ईद मुबारक़.......मत्ला ही मारक क्षमता से परिपूर्ण है

इन्सान की इज़्ज़त भी न इन्सान करे तो
फिर कैसे कहे कोई अधर ईद मुबारक़ ?.........Dy SP की मौत भी एक सवाल है

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on June 25, 2017 at 10:11pm
आदरणीय सौरभ सर बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है, हर शैर सवा अरब का प्रतिनिधित्व कर रहा है, भारत के परिवेश को ग़ज़ल में उतार दिया है आपने।

सादर प्रणाम
Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 25, 2017 at 9:51pm

वाह मुग्ध हूँ, आपकी ग़ज़ल पढ़कर, लाजबाब से भी लाजबाब, बहुत बहुत बधाई आपको. ईद मुबारक 

Comment by रामबली गुप्ता on June 25, 2017 at 4:18pm

वाह वाह सर कितनी सहजता से बह्र में भी अपनी बात को कह लेते है आप। बहुत शानदार। बहुत खूब बधाई आपको।

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