जीवन क्रम
संगत-असंगत
जड़ चेतन
नदी की धारा
काँपती पतवार
मन भँवर
चढ़ती धूप
लम्बी परछाइयाँ
ढलती धूप
धुप्प अंधेरा
दिए की हिलती लौ
आखरी आस
सूना आंगन
चाँदनी चुप-चाप
व्यथित मन
मन के रिश्ते
छितरे तार-तार
ऐसे बेगाने
बासी हो जातीं
दिल में बसी यादें
टूटें सपने
Comment
मन के रिश्ते
छितरे तार-तार
ऐसे बेगाने
बासी हो जातीं
दिल में बसी यादें
टूटें सपने
आदरणीया नीलम जी ..जिन्दगी के उतार चढाव रहते ही हैं संग -संग ..सुन्दर रचना
सूना आंगन
चाँदनी चुप-चाप
व्यथित मन,
Neelam didi..saare ek se badhkar ek hain...aur inka shilp to bas dekhte hi banta hai..bahut bahut badhai aapko..
हाइकू के लिये शुक्रिया.
पहली तीनों हाइकू की अंतर्धारा बहुत तीव्र है. इस के लिये आपको कोटिशः धन्यवाद.
एक बात,
//बासी हो जातीं
दिल में बसी यादें
टूटें सपने//
यादों का बासी होना.. ?? भइ, वो तो हमेशा इतना ताज़ा रहती हैं कि ताज़ा लफ़्ज़ को अब याद ही कहना चाहिये.
खैर, पढ़ना अच्छा लगा.
योगराज जी,
आदर भरा मेरा
है नमस्कार ।
मेरी हाइकू
एक छोटी कोशिश
तुच्छ प्रयास
मेरी तारीफ
आपका बड़प्पन
है धन्यवाद
नहीं मानती
अपने आप को मैं
इस काबिल
कुछ भूल हो
कभी कोई मुझसे
करें सुधार
यूँ ही हमेशा
बढ़ाएँ मनोबल
यही आग्रह
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