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ख्वाब भी तेरा सताता है मुझे

एक ग़ज़ल का प्रयास

२१२२ २१२२ २१२

 

नींद में आकर सताता  है मुझे

ख्वाब भी तेरा जगाता है मुझे

 

झूमती आती घटायें बदलियाँ,

प्यार का मौसम बुलाता है मुझे

 

सर्दियों में सूर्य भाया था बहुत,  

गर्मियों में अब  तपाता है मुझे

 

प्रार्थना तुमसे मिलन की, की तो है,

देखिए प्रभु कब मिलाता है मुझे

 

साथ मेरा आप दोगे या नहीं,

प्रश्न ये हर पल डराता है मुझे

 

मुश्किलें हैं जिन्दगी में, राह भी,

हौसला जीना सिखाता है मुझे

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 8, 2017 at 6:48pm

हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से आभार आदरणीय mohammed  Arif जी आपका

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 8, 2017 at 6:48pm

हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से आभार आदरणीय sushil sarna जी आपका

Comment by Sushil Sarna on May 8, 2017 at 4:30pm

नींद में आकर जगाता है मुझे
ख्वाब भी तेरा सताता है मुझे

झूमती आती घटायें बदलियाँ,
प्यार का मौसम बुलाता है मुझे

वाह आदरणीय बसंत कुमार जी बहुत सुंदर ... इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Mohammed Arif on May 8, 2017 at 12:42pm
आदरणीय बसंथ कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का सफलतम प्रयास । बेहतरीन ग़ज़ल । इप अपनी ग़ज़ल कहने में कहाँ तक सफल हुए हैं ये तो गुणीजन बताएँगे । थोड़ा इंतज़ार करें ।

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