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जो थे अरसे से खामोश मेरे इन होठों को तराने मिल गये
लड़ा पत्थरों से कुछ ऐसे की हीरों के खजाने मिल गये

गया मेरी जिंदगी से, मुझे मरने के लिए छोड़ गया वो
अब भी हूँ जिंदा मस्ती मे, मुझे जीने के बहाने मिल गये

जो था मेरा अपना वो मुझसे अब नज़रें चुराने लग गया
पर इस महफ़िल मे हंसकर गले मुझसे बैगाने मिल गये

घर से मिकला था की जाऊँगा मंदिर पर अभी तो नशे मे हुँ
अगली ही गली मे मुझे ये कितने सारे मयखाने मिल गये

गया था कुछ बैगानों की महफ़िल मे कल रात मैं पल्लव
वहाँ एक कौने मे खड़े मुझे मेरे सारे दोस्त पुराने मिल गये

भुला दिए मैने आँसू भरे वो दिन और वो सारी तन्हा रातें
हँसके कहता हूँ मुझे अब खुशियों से भरे ज़माने मिल गये

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 5, 2010 at 5:35pm
भुला दिए मैने आँसू भरे वो दिन और वो सारी तन्हा रातें
हँसके कहता हूँ मुझे अब खुशियों से भरे ज़माने मिल गये,

Bahut badhiya, yey hai life ko positively dekhney ki koshish, bahut sunder gazal, badhai,
Comment by विवेक मिश्र on July 5, 2010 at 9:12am
अच्छा लिखने के लिए अच्छी सोच का होना बहुत जरूरी है और आपकी अच्छी सोच इस ग़ज़ल में साफ़ झलकती है. मैं प्रभाकर जी की तरह जानकार तो नहीं, पर मेरा सुझाव है कि आपको मिसरे की लम्बाई पर ध्यान देना चाहिए.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 4, 2010 at 9:51am
पल्लव भाई आपके अल्फ़ाज़ों में बडी गहराई है......जो सबित करती है कि आप डूब कर लिखते हैं......थोडा योगराज सर की बतों पर भी गौर फ़र्माइयेगा..और निखार आयेगा ..

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 3, 2010 at 11:43am
हुत बेहतर आशार हैं इस गज़ल के पल्लव भाई ! मुझे बड़ी मसर्रत हो रही है आपकी शायरी में परिपक्वता आती देखकर ! थोडा शब्द विन्यास पर और ध्यान दोगे तो गज़ल में और भी ज्यादा निखर आयेगा ! पांचवें शेयर की तरतीब बदल कर उसको सब से अंत में कर दो, क्योंकि गज़ल विधान के अनुसार वो शेअर जिस में शायर का नाम या तखल्लुस (उपनाम) आए वो सब से आखिर में आना चाहिए ! कुल मिला कर बहुत अच्छा लिखा है - शाबाश !

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