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ग़ज़ल-नूर की - इस तरह हर इक गुनह का सामना करना पड़ा,

२१२२/२१२२/२१२२/२१२ 
.
इस तरह हर इक गुनह का सामना करना पड़ा,
हश्र में ख़ुद के किये पे तब्सिरा करना पड़ा.
.
सुल्ह फिर अपने ही दिल से यूँ हमें करनी पड़ी,
फ़ैसले को टालने का फ़ैसला करना पड़ा. 
.
क़ामयाबी की ख़ुशी में चीखता है इक मलाल,
सोच कर निकले थे क्या कुछ और क्या करना पड़ा.
.
एक मुद्दत से कई चेहरे थे आँखों में असीर,
आँसुओं की शक्ल में सब को रिहा करना पड़ा.
.
झूठ के नक्क़ारखाने में बला का शोर है,
सच की शहनाई को सुन कर अनसुना करना पड़ा.
.
आ गया था एक बार उस की तिलस्मी बातों में, 
ज़ह’न को फिर उम्र भर दिल का कहा करना पड़ा. 
.
इन की ख्वाहिश हम न समझेंगे तो फिर समझेगा कौन
पाँओं को काँटो की ख़ातिर बरहना करना पड़ा.
.
जब सभी पत्थर ख़ुदा होने पे आमादा मिले,

“नूर” ख़ुद को पत्थरों में आइना करना पड़ा.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 29, 2023 at 2:00pm

आदरणीय मंच 
इस ग़ज़ल में एक शेर में बरहना को २२ वज़न पर लिया था.. आज पता हुआ कि बरहना का वज़न २२ नहीं १२२ होता है अत: मैं इस शेर को फिलहाल खारिज कर रहा हूँ ..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 12:07pm

धन्यवाद आ. हर्ष जी 

Comment by Harash Mahajan on April 25, 2018 at 9:44am

वाह आदरणीय नीलेश जी 

बहुत ही खूबसूरत पेशकश

दिली दाद हाजिर है सर!

सादर !

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 8:14am

धन्यवाद आ. महेंद्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 8:14am

धन्यवाद आ. रवि जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 8:14am

धन्यवाद आ. गिरिराज जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 25, 2018 at 8:14am

धन्यवाद आ. राजेशी कुमारी जी 

Comment by Mahendra Kumar on April 7, 2017 at 7:49pm
आदरणीय नीलेश सर, सभी शेर एक से बढ़कर एक हुए हैं किसी एक की क्या बात कहूँ। मेरी तरफ से शेर-दर-शेर दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल फरमाएँ। सादर।
Comment by Ravi Shukla on April 7, 2017 at 2:01pm


एक मुद्दत से कई चेहरे थे आँखों में असीर,
आँसुओं की शक्ल में सब को रिहा करना पड़ा.
  बहुत खूब आदरणीय नीलेश जी क्‍या कहने इस शेर के 

पूरी गजल अच्‍छी हुई है दिली मुबारक बाद हाजिर है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 6, 2017 at 5:59pm

क्या बात है , आ. नीलेश भाई .. बहुत अच्छी गज़ल कही आपने ... बधाइयाँ स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
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