For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

"साहेब, कोई पुराना चद्दर हो तो दे दीजिये । बहुत ठंढा गिरने लगा है । कोई पुराना चद्दर दे दीजिये ।"

 

यूं तो वर्किंग डे पर रात के किसी भी आयोजनों में जाने का प्रोग्राम कम ही बनता है । लेकिन फिर भी कभी-कभी कुछ ऐसे मौके भी आ ही जाते हैं जब इस तरह के किसी आयोजन में जाना पड़ जाता है । ऐसे ही एक आयोजन को अटेण्ड कर वापस आते-आते रात के साढ़े ग्यारह बज गए । गोल्फ कोर्स मेट्रो स्टेशन से घर तक जाने के लिए आटो आटो या रिक्शा लेना पड़ता है ।  अक्तूबर के अंतिम सप्ताह के आते-आते मौसम में दिन की तेजी कुछ कम हो चली थी और रातें भी अच्छी ख़ासी सर्दी का एहसास दिलाने लग गई थीं, सो पति देव से अनुरोध किया कि आटो से जाने में ठंढ लगेगी इसलिए रिक्शे से चला जाए । । घर पहुँच कर रिक्शेवाले को चालीस रुपए थमाये तो उसने कहा कि यहाँ तक का भाड़ा पचास रुपया बनता है । पति देव ने थोड़ी सख्ती दिखाई तो वह चुप हो गया । पैसे देकर अभी हम आगे बढ़े ही थे कि रिक्शेवाले ने पीछे से आवाज लगाई – "साहेब... "

उसकी आवाज सुन कार हम दोनों ही ठिठक गए । पीछे मुड़ कर देखा कि वो अभी तक कुछ कह पाने के अनिश्चय की स्थिति में खड़ा था ।

पति ने पूछा "अब क्या हो गया" ।

"साहेब, कोई पुराना चद्दर हो तो दे दीजिये । एके ठो चद्दर था, धो के सूखने पसारे थे कोई चोरा लिया । दिन भर बाहर रहते हैं न, तो मौका देख के उठा लिया सब । अब ठंढा गिरने लगा है । कोई पुराना चद्दर दे दीजिये ।"

पति देव ने तपाक से कह दिया – "कल आ जाना, निकाल के रख रखेंगे, फिर ले जाना ।"

यह सुन कर रिक्शेवाला मायूस हो गया । मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा । मैं तुरत बोल पड़ी "थोड़ा इंतजार करो ।  देखती हूँ, कुछ मिल जाए तो ।" घर में जाकर पुराने कपड़ों का गट्ठर खंगाल लिया पर कोई चद्दर नहीं मिली । तभी पतिदेव ने पुराना कंबल निकाल लिया । मैंने प्रश्नवाचक नजरों से देखा तो बोल पड़े "अरे दे दो । उसे बहुत जरूरत है इसकी । हमारे पास तो डम्प करके रखा हुआ है । उसके काम आ जाएगा । और ये सब भी दे दो ।  लाओ मैं ही दे आता हूँ ।"

"ये सब" में उनकी 5 कमीजें, एक जैकेट, एक स्वेटर और दो पैंटें थीं । पति देव नीचे खड़े रिक्शेवाले को "ये सब" देने चले गए और मैं सोचती रही कि दस रुपये के लिए रिक्शेवाले को मना करने वाला क्या ऐसे कर सकता है ।  

  

 

 मौलिक एवं अप्रकाशित

 

    

Views: 466

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neelam Upadhyaya on March 27, 2017 at 3:00pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद  । 

 

Comment by Neelam Upadhyaya on March 27, 2017 at 2:59pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार । 

Comment by TEJ VEER SINGH on March 17, 2017 at 10:48am

हार्दिक बधाई आदरणीय नीलम जी जी।बेहतरीन प्रस्तुति।

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 17, 2017 at 8:19am
आपकी कहानी में उठाये गए प्रश्न का उत्तर भी आपकी ही कहानी में है। कहानी स्वयं में यथार्थ का विवरण है इसलिए कहानी बहुत अच्छी है , बधाई आदरणीय सुश्री नीलम उपाध्याय जी , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service