For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्वतंत्र, परतंत्र या परजीवी (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

चारों तरफ़ हाल बेहाल हैं। 'कुछ लोग' बहुत 'चौंक' रहे हैं। 'कुछ लोगों' के मन में बहुत सारे 'सवाल' हैं। बहुत से सवाल ज्वलंत हैं, कुछ सामयिक हैं और कुछ एक असामयिक या आकस्मिक, जबकि कुछ एक सवाल ऊट-पटांग भी हैं। लेकिन अधिकतर सवाल किसी भी रूप या विधा में अभिव्यक्त नहीं हो पा रहे हैं। डर है कि किसी 'सवाल' को अभिव्यक्त करने पर कोई 'बबाल' न मच जाये।

लेकिन 'कुछ लोग' हर हाल में हालात के मद्देनज़र ज़ोख़िम लेकर अपने-अपने तरीक़ों से 'सवाल' उठा रहे हैं। उन पर मीडिया, नेता और धर्म-गुरू अपनी-अपनी टी.आर.पी./लोकप्रियता बढ़ाने के लिए अपने-अपने उन तरीक़ों से 'बबाल' मचा रहे हैं, जिन पर उन्हें महारथ हासिल है! '

जो 'कुछ लोग' हर 'हाल', 'सवाल' और 'बबाल' पर 'चौंक' रहे हैं, वे अपनी-अपनी शैली में, मनमानी भाषा में 'भौंक' रहे हैं! उन्हें सुनकर ' कुछ लोग' भीड़ में इकट्ठे हो रहे हैं। 'सवाल' उनके भी मन में उठ रहे हैं सो वे भी बस 'चौंक' ही रहे हैं, लेकिन ' कुछ लोग' ऐसे भी हैं जो चौंक कर भी ऐसी चुप्पी साधे हुए हैं जैसे कि मानो उन्हें कोई साँप सूंघ गया हो!

हाँ, ' कुछ लोग' ऐसे भी हैं जिन्हें किसी के 'हाल', 'सवाल' और 'बबाल' से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें तो बस अपनी दैनिक कमाई और रोज़ी-रोटी से मतलब है। किसी तरह का तनाव लेने के बजाय 'जो है, जैसा है, जितना है', उसी में जीवन जीने में यक़ीन रखते हैं; समाज, देश व दुनिया से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है!

"स्वतंत्रता या लोकतंत्र के नाम पर क्या सब कुछ जायज़ है?"

"ये 'कुछ लोग' कौन हैं? शिक्षित हैं या अशिक्षित? युवा, प्रौढ़ हैं या बुज़ुर्ग? किस धर्म या साम्प्रदाय के हैं?"

"ये 'कुछ लोग' स्वतंत्र हैं या क़ैद या केवल आत्मकेन्द्रित? बेबस हैं या फिर बिके हुए?"

"ये 'कुछ लोग' नेताओं, तंत्र या सत्ता के अधीन हैं, परतंत्र हैं? या उन पर निर्भर हैं, परजीवी हैं?"

"कौन हैं ये 'कुछ लोग'?"

मुख्य सवाल तो यही है और जवाब है- "बुद्धिजीवी! हाँ, हमारे परिवार, समाज और देश के बुद्धिजीवी! हर वर्ग के बुद्धिजीवी!"

लेकिन चौंका देने वाला एक सवाल यह भी है कि ये बुद्धिजीवी आज के समाज-सेवी हैं या स्वार्थी? स्वतंत्र हैं, परतंत्र हैं या परजीवी?"

यह एक अहम सवाल था, है और रहेगा!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 550

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 1, 2017 at 3:43pm
आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय जी व आदरणीय नीता कसार जी, अापने रचना पर समय देकर जिस ओर संकेत किया है उस पर अन्य वरिष्ठ पाठकों की राय की भी प्रतीक्षा है विवरणात्मक शैली की इस प्रतीकात्मक रचना अभ्यास के संदर्भ में। सादर
Comment by Nita Kasar on March 1, 2017 at 6:50am
बहुत उम्दा तरीके से कथा कहनी चाही है आपने यहाँ पर कुछ अस्पष्ट रह गया है ।इसी कारण कथा मेरी तो समझ से परे हो गई है ।पाठक क्या अनुमान लगाये ।आद० प्रतिभा पांडे से सहमत हूँ ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 28, 2017 at 6:39am
बहुत बहुत शुक्रिया रचना पर अपनी राय से अवगत कराने के लिए आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय जी। वरिष्ठजन से मार्गदर्शन चाहूँगा।
Comment by pratibha pande on February 24, 2017 at 1:33pm
पर इसमे कथा कहाँ है आदरणीय ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service