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स्वतंत्र, परतंत्र या परजीवी (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

चारों तरफ़ हाल बेहाल हैं। 'कुछ लोग' बहुत 'चौंक' रहे हैं। 'कुछ लोगों' के मन में बहुत सारे 'सवाल' हैं। बहुत से सवाल ज्वलंत हैं, कुछ सामयिक हैं और कुछ एक असामयिक या आकस्मिक, जबकि कुछ एक सवाल ऊट-पटांग भी हैं। लेकिन अधिकतर सवाल किसी भी रूप या विधा में अभिव्यक्त नहीं हो पा रहे हैं। डर है कि किसी 'सवाल' को अभिव्यक्त करने पर कोई 'बबाल' न मच जाये।

लेकिन 'कुछ लोग' हर हाल में हालात के मद्देनज़र ज़ोख़िम लेकर अपने-अपने तरीक़ों से 'सवाल' उठा रहे हैं। उन पर मीडिया, नेता और धर्म-गुरू अपनी-अपनी टी.आर.पी./लोकप्रियता बढ़ाने के लिए अपने-अपने उन तरीक़ों से 'बबाल' मचा रहे हैं, जिन पर उन्हें महारथ हासिल है! '

जो 'कुछ लोग' हर 'हाल', 'सवाल' और 'बबाल' पर 'चौंक' रहे हैं, वे अपनी-अपनी शैली में, मनमानी भाषा में 'भौंक' रहे हैं! उन्हें सुनकर ' कुछ लोग' भीड़ में इकट्ठे हो रहे हैं। 'सवाल' उनके भी मन में उठ रहे हैं सो वे भी बस 'चौंक' ही रहे हैं, लेकिन ' कुछ लोग' ऐसे भी हैं जो चौंक कर भी ऐसी चुप्पी साधे हुए हैं जैसे कि मानो उन्हें कोई साँप सूंघ गया हो!

हाँ, ' कुछ लोग' ऐसे भी हैं जिन्हें किसी के 'हाल', 'सवाल' और 'बबाल' से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें तो बस अपनी दैनिक कमाई और रोज़ी-रोटी से मतलब है। किसी तरह का तनाव लेने के बजाय 'जो है, जैसा है, जितना है', उसी में जीवन जीने में यक़ीन रखते हैं; समाज, देश व दुनिया से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है!

"स्वतंत्रता या लोकतंत्र के नाम पर क्या सब कुछ जायज़ है?"

"ये 'कुछ लोग' कौन हैं? शिक्षित हैं या अशिक्षित? युवा, प्रौढ़ हैं या बुज़ुर्ग? किस धर्म या साम्प्रदाय के हैं?"

"ये 'कुछ लोग' स्वतंत्र हैं या क़ैद या केवल आत्मकेन्द्रित? बेबस हैं या फिर बिके हुए?"

"ये 'कुछ लोग' नेताओं, तंत्र या सत्ता के अधीन हैं, परतंत्र हैं? या उन पर निर्भर हैं, परजीवी हैं?"

"कौन हैं ये 'कुछ लोग'?"

मुख्य सवाल तो यही है और जवाब है- "बुद्धिजीवी! हाँ, हमारे परिवार, समाज और देश के बुद्धिजीवी! हर वर्ग के बुद्धिजीवी!"

लेकिन चौंका देने वाला एक सवाल यह भी है कि ये बुद्धिजीवी आज के समाज-सेवी हैं या स्वार्थी? स्वतंत्र हैं, परतंत्र हैं या परजीवी?"

यह एक अहम सवाल था, है और रहेगा!

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 1, 2017 at 3:43pm
आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय जी व आदरणीय नीता कसार जी, अापने रचना पर समय देकर जिस ओर संकेत किया है उस पर अन्य वरिष्ठ पाठकों की राय की भी प्रतीक्षा है विवरणात्मक शैली की इस प्रतीकात्मक रचना अभ्यास के संदर्भ में। सादर
Comment by Nita Kasar on March 1, 2017 at 6:50am
बहुत उम्दा तरीके से कथा कहनी चाही है आपने यहाँ पर कुछ अस्पष्ट रह गया है ।इसी कारण कथा मेरी तो समझ से परे हो गई है ।पाठक क्या अनुमान लगाये ।आद० प्रतिभा पांडे से सहमत हूँ ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 28, 2017 at 6:39am
बहुत बहुत शुक्रिया रचना पर अपनी राय से अवगत कराने के लिए आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय जी। वरिष्ठजन से मार्गदर्शन चाहूँगा।
Comment by pratibha pande on February 24, 2017 at 1:33pm
पर इसमे कथा कहाँ है आदरणीय ?

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