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22 22 22 22 22 22 22 2
(बह्र ए मीर)

वो आएं मैं चहक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है
उन्हें देख कर चमक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है

तन पाटल चन्दन मन सुरभित वाणी ज्यों कचनार झरे
उनसे मिल कर महक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है

गेंहुवन रंग लटें नागिन सी हृदय पे सीधे वार करें
फिर भी उनके निकट न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है

सुर सरिता अधरों से बहती, इधर राग स्नेहिल पंछी
कोकिल स्वर संग कुहक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है

भाव भंगिमाओं का उत्तर, और किसी के पास नहीं
रूप अग्नि संग दहक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:50pm
आदरणीय सौरभ सर इंगित दोषों को शीघ्र ही दूर करने का प्रयास करता हूं सादर प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:33pm
आदरणीय भाई बृजेश जी बहुत बहुत आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:29pm
आदरणीय चयनित भाई सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:29pm
आदरणीय बाऊजी काफिया दोष जल्दी ही दूर करता हूं सादर प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:29pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ सर बहुत बहुत आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:28pm
आदरणीय आशुतोष सर इस बेहद ही खूबसूरत टिप्पणी के लिए आपका हृदय तल से आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:28pm
आदरणीय आशुतोष सर इस बेहद ही खूबसूरत टिप्पणी के लिए आपका हृदय तल से आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2017 at 11:33pm

फिर भी उनके निकट न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है = फिर ऐसे में बहक न जाऊँ, ऐसा तो नामुमकिन है 

सुर सरिता अधरों से बहती, इधर राग स्नेहिल पंछी .. इस मिसरे का दूसरा भाग अधूरा वाक्य हो कर रह गया है. इसे देख लेंं .. 

बधाई इस प्रयास केलिए 

शुभेच्छाएँ 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 12, 2017 at 9:43am
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई अदरणीय..हार्दिक बधाई
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 9, 2017 at 9:33pm
आदरणीय पंकज जी, बहुत अच्छी रचना हुई है। दूसरे शेर के सन्दर्भ में आदरणीय समर कबीर जी का कथन उचित है।

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