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बहरे हज़ज़ सालिम मुसम्मन
1222 1222 1222 1222
सुनाऊँ किस तरह किस्से बता दे खाकसारों के
चली ऐसी हवा की झर गये पत्ते चिनारों के

हुईं क्या हैं खतायें आसमां से चाँद ने पूँछा
कि सारी रात क्यों बहते रहे आँसू सितारों के

तुम्हारे साथ लौटी है दरो दीवार पर रौनक
तड़फते रह गये हैं नीव के पत्थर मिनारों के

चमन के सुर्खरू मंज़र घुली खुशबू फिजाओं में
ये क्या दस्तूर है की देखना अब गम बहारों के

वहीँ खुशियाँ वहीँ पे गम अज़ब आलम विदाई का
शिकन उभरी नजर आते हैं दर्दो गम कहारों के

मिलन की आस दिल में ले चली इक नाव अलबेली
उठी ऐसी लहर की ढह गये अरमां किनारों के

न रखना उल्फतें उनसे न होंठों पे गिला रखना
बड़े कमज़र्फ होते हैं सहारे गम निसारों के
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 8, 2017 at 11:20pm
हार्दिक आभार मित्र गौरव
Comment by gaurav kumar pandey on January 26, 2017 at 10:09pm
बहुत सुंदर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 25, 2017 at 8:51pm
आदरणीय डा.आशुतोष जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 25, 2017 at 8:49pm
आपकी हौसलाफजाई से अति प्रसन्नता का अनुभव हुआ आदरणीय मिथिलेश जी..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 25, 2017 at 8:48pm
आदरणीय गिरिराज जी सदैव की भांति सुन्दर एवं मनोहारी शब्दों के लिए आपकी हार्दिक अभिनन्दन वंदन...सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 25, 2017 at 8:46pm
आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी...सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 25, 2017 at 1:22pm

आदरणीय ब्रिजेश जी ..बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुयी है .बिद्वत्जनो की प्रतिक्रिया से सीखने को भी मिला .इस रचना पर ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2017 at 12:27am

आदरणीय बृजेश जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. आदरणीय समर कबीर जी की इस्लाह के बाद एक मुकम्मल ग़ज़ल हो गयी. बहुत बहुत बधाई आपको. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 24, 2017 at 9:34pm

आदरनीय बृजेश भाई , बहुत अच्छी गज़ल हुई है जो आ. समर भाई जी की इस्लाह से और भी अच्छी हो गयी है , दिली बधाइयाँ प्रेषित हैं , स्वीकार करें ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 23, 2017 at 3:01pm
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन, बहुत ही उम्दा गजल कही आपने, दाद के साथ मुबारकबाद निवेदित है, सादर

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