For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,
है मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,
 
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,      
 
यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी गैर के कारण,
करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम,
 
पड़े अब आँख पर परदे नये रिश्तों के शीशे से,
हैं टूटे खून के धागे ये मानो या न मानो तुम,
 
कलेजा चीर भी दोगे नहीं कुछ मोल है "बागी"
रहा पानी न आँखों में ये मानो या न मानो तुम

Views: 1537

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rash Bihari Ravi on May 26, 2011 at 12:54pm
khubsurat
Comment by R N Tiwari on May 26, 2011 at 12:37pm
बहुत सुन्दर रचना . ह्रदय से प्रस्फुटित सत्य को उजागर करती शुद्ध रचना. बधाई .
आर .एन. तिवारी
 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2011 at 10:02am
पुनिया साहिब ग़ज़ल के अदना विद्यार्थी की प्रस्तुति आप को पसंद आई इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2011 at 10:01am
अम्बरीश भाई, एक एक शे'र का विवेचना कर आपने पूरी ग़ज़ल को जो इज्जत बख्सी है उसके लिए शुक्रगुजार हूँ मैं, साथ में बेहतरी के लिए इशारा आपके दरियादिली का एक उदाहरण है, निसंकोच सुझाव दिया करे, बागी हमेशा सर माथे पर स्वीकार करेगा | बहुत बहुत धन्यवाद |
Comment by nemichandpuniyachandan on May 26, 2011 at 9:35am
Shree,Ganesh Jee"Bagi" shahib,Rahoon main Raam bhee banake agar ho bharat saa bhaee,Hai maataa kaikaee ghar me ye maano na maano tum.Waah..Waah. Nafees kalam ke liye mubarakbad.
Comment by Er. Ambarish Srivastava on May 26, 2011 at 12:14am
//सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,

हैं मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,//

अय हय! क्या पते की बात बताई है .........यहीं तो मात का गया इण्डिया ......



//रहूँ मैं राम भी बनके अगर भाई भरत सा हो,,

हैं माता कैकेयी घर में ये मानो या न मानो तुम, //

दिखाया चीर के सीना गज़ब का शेर कह डाला,

किसी की आप बीती है ये मानो या न मानो तुम. .



//यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी गैर के कारण,

करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम,//

गज़ब गज़ब !! लाख टके की बात कह डाली !



//पड़े अब आँख पर परदे नये रिश्तों के शीशे से,

हैं टूटे खून के धागे ये मानो या न मानो तुम,//

अय हय! यही तो घर-घर की कहानी है मेरे भाई!



//कलेजा चीर भी दोगे नहीं कुछ मोल है "बागी"

रहा पानी न आँखों में ये मानो या न मानो तुम,//

बड़ी अच्छी ग़ज़ल कह दी बधाई तुमको बागी जी,

हैं खाए जख्म अब गहरे ये मानो या न मानो तुम.


आदरणीय भाई बागी जी ! यह ग़ज़ल कलेजे पर सीधा ही वार करती है .......इस हेतु हृदय से बधाई सहित साधुवाद स्वीकारें ....... सादर .....
Comment by विवेक मिश्र on May 26, 2011 at 12:10am
/यकीं मानो न बिगड़ेगा कभी भी गैर के कारण,
करेंगे वार बस अपने ये मानो या न मानो तुम,/
एकदम सही बात है. आजकल पराये लोगों से ज्यादा, अपनों से ही डर बना रहता है.जावेद अख्तर साहब ने भी कहा है-
'गैरों को कब फुर्सत है दुःख देने की,
जब होता है कोई हमदम होता है'
अपेक्षाकृत लम्बे रदीफ़ को भी बखूबी निभाया है. हार्दिक बधाई.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 25, 2011 at 10:25pm
धन्यवाद धर्मेन्द्र भाई |
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 25, 2011 at 9:31pm
बहुत सुंदर ग़ज़ल है बागी जी। एकदम कलेजा चीर देने वाली। बधाई

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 25, 2011 at 6:06pm
आदरणीय धरम भाई, ग़ज़ल पसंद करने हेतु बहुत बहुत आभार |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service