For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्मृति के आँगन में ...

स्मृति के आँगन में ...

तुम सवालों को
सवाल क्योँ नहीं रहने देती
अपनी मौनता से
तुम नैन व्योम में बसी
अतृप्त तृष्णा से
अपने कपोलों पर
क्योँ गीले काजल से श्रृंगार
कर अनुत्तरित प्रश्नों का
उत्तर चाहती हो

क्योँ सुरभित मधु पलों को
अपने गीले आँचल में लपेट कर
स्मृति अंकुरों को
प्रस्फुटित होने का अवसर
देना चाहती हो

क्योँ मृदु चांदनी में
उदास निशा से
टूटे तारे से माँगी इच्छा के
अपूर्ण रहने का उत्तर
माँगना चाहती हो

क्योँ अपनी कुसुमांजलि में
किसी की प्रतीक्षा में
प्रति क्षण मुरझाते पुष्पों से
उनके मुरझाने का
कारण जानना चाहती हो

शायद तुम भी नहीं जानती
तुम ये क्योँ चाहती हो

शायद उस बटोही के लिए
जो स्पर्श स्पंदन की
अनुभूति दे ओझल हो गया
और
अपने आभास के महकते चन्दन से
हृदय में
मधुऋतु के अव्यक्त क्षणों का
अमिट लेख लिख गया

एक सवाल के कई उत्तर
या
एक उत्तर के कई सवाल

देखो जब तक ये सवाल
कुसुमित पलकों पर
भ्रमर से मंडराते रहेंगे
उसकी याद के तमाम तृण
तुम्हारी स्मृति के आँगन में
इक घरोंदा बनाते रहेंगे
तुम्हारे जीवन के
हर पल को
उसके आने की आस से
मृदुल बनाते रहेंगे


सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 493

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 13, 2017 at 3:07pm

आदरणीय   Mohammed Arif  साहिब प्रस्तुति आपकी आत्मीय प्रशंसा की हार्दिक अभारी है। आपकी स्नेहाशीष का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 13, 2017 at 3:06pm

आदरणीय   सुनील प्रसाद(शाहाबादी)  साहिब प्रस्तुति आपकी आत्मीय प्रशंसा की हार्दिक अभारी है।  हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 13, 2017 at 3:06pm

आदरणीय  Tasdiq Ahmed Khan साहिब प्रस्तुति आपकी आत्मीय प्रशंसा की हार्दिक अभारी है। आपकी स्नेहाशीष का हार्दिक आभार।

Comment by Mohammed Arif on January 12, 2017 at 11:55pm
आदरणीय सुशील सरनाजी, सुंदर भावों की पीठिका पर विराजित कविता के लिए हार्दिक बधाई !
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on January 12, 2017 at 8:42pm
बहुत सुंदर भावप्रद कविता आदरणीय हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति हेतू।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 12, 2017 at 7:18pm

मुहतरम जनाब सुशील सरना साहिब , स्मृति की मंज़र कशी करती सुन्दर कविता के लिए , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं

Comment by Sushil Sarna on January 12, 2017 at 6:42pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति के भावों ने आपकी भावनाओं को छुआ, सृजन सफल हो गया। आपके द्वारा इंगित त्रुटि मैं अभी संशोधित कर पुनः पोस्ट करता। आपकी इस सूक्ष्म दृष्टि एवम सुझाव का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 12, 2017 at 6:42pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति आपकी आत्मीय प्रशंसा की हार्दिक अभारी है। आपकी स्नेहाशीष का हार्दिक आभार।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2017 at 4:55pm

आदरणीय सुशील सरना सर, हृदय में उतरकर, संवेदनाओं को झंकृत करती बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. अनुतरित को अनुत्तरित कर लीजियेगा. सादर 

Comment by Samar kabeer on January 12, 2017 at 1:49pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत सुंदर जज़्बाती कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service