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ग़ज़ल(दीप जला कर रखना) ----------------------------------------

ग़ज़ल(दीप जला कर रखना)
----------------------------------------
फाइलातुन -फइलातुन-फइलातुन-फेलुन

इसको दुनिया की नज़र बद से बचा कर रखना |
अपने दिल में ही मुहब्बत को छुपा कर रखना |

नीम शब आऊंगा मैं कैसे तुम्हारे घर पर
जाने मन बाम पे इक दीप जला कर रखना |

क्या खबर ख्वाब की ताबीर बदल जाए कब
मेरी तस्वीर को सीने से लगा कर रखना |

डर है बद ज़न कहीं अह्बाब न कर दें उनको
अपने जज़्बात को दिल में ही दबा कर रखना |

अश्के गम आँख से निकले ही नहीं हैं अब तक
हुक्म उनका है सितारों को सज़ा कर रखना |

दिल के खामोश समुंदर में हुई है हलचल
उसमें अहसास की लहरों को उठा कर रखना |

जाने कब अपने ही तस्दीक़ दगा दे जाएँ
जो हैं अग्यार उन्हें अपना बना कर रखना |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 7, 2017 at 3:43pm

 मुहतरम जनाब समर कबीर . साहिब आदाब ,  ग़ज़ल में आपकी गहराई से शिरकत और हौसला अफज़ाई  का बहुत बहुत शुक्रिया ---टाइप करते वक़्त'' सजा'' का ''सज़ा'' हो गया , ध्यान दिलाने का शुक्रिया 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 7, 2017 at 3:37pm

जनाब महेन्द्र कुमार साहिब ,  ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई  का बहुत बहुत शुक्रिया ---


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 3:05pm

आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं.  सादर

Comment by Samar kabeer on January 7, 2017 at 2:58pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
पांचवें शैर के सानी मिसरे में 'सज़ा' को "सजा"कर लीजिये ।
Comment by Mahendra Kumar on January 7, 2017 at 1:24pm
आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

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