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न जाने क्यों उनका इंतज़ार करती हूँ
न आये कभी जो उनसे प्यार करती हूँ

देखा था उनकों पहली बार जब
नयन से नयन मिले थे तब
कशिश थीं उनकी आँखों में
डूबती गयी उनकी बाँहों में ।

स्पर्श था प्रथम वो मेहबूब का
एहसास था प्यार का प्रीत का
थामा जब हाथ उन्होंने मेरा
तब शर्माया था दामन मेरा ।


एक ख़्वाब ही तो था
जो प्यार का एहसास था
वो दर्द दे गया है मुझे
आह निकली है मुख से ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 3, 2017 at 11:16am
आदाब जनाब समर साहब । कोशिश कर रही हूँ बेहतर लिखने की । आपसे वादा किया है देर हो सकती है पर आप ने मुझसे कहा है ग़ज़ल के लिए भी । मेरे ज़हन में है । प्रयास करुँगी । समय लग सकता है पर । थोड़ी स्लो हूँ । सादर ।
Comment by Samar kabeer on January 3, 2017 at 10:55am
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,बहुत उम्दा जज़्बाती नज़्म हुई है,आपके लेखन में दिन ब दिन निखार आ रहा है ये देख कर ख़ुशी होती है,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 3, 2017 at 8:00am
धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश सर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 1:06am

आदरणीया कल्पना जी, बढ़िया भावाभिव्यक्ति हुई है. हार्दिक बधाई. सादर 

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