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गर्द में सारा नगर डूबा हुवा है।

बह्र: 2122 2122 2122

रात हो या दोपहर डूबा हुआ है।
गर्द में सारा नगर डूबा हुआ है।।

मौत आनी है यकीनन इस जहाँ में
खौफ में फिर भी बशर डूबा हुआ है।।

लक्ष्य कोई भी तुझे कैसे मिलेगा
तू निराशा में अगर डूबा हुआ है।।

ख़त्म करता जा रहा है दश्त इंसाँ
फ़िक्र में अब हर शजर डूबा हुआ है।।

साथ में कुछ भी नही जाता यहाँ से
मोह में इंसाँ मगर डूबा हुआ है।।

वो दिलासा क्‍या हमें देगा जो खुद ही
'आँसुओं में तर ब तर डूबा हुआ है।।'

यूँ छुपाया गेसुओं ने चाँद चेहरा
बादलों में इक क़मर डूबा हुआ है।।

'नाथ' उल्फत के नशे में क्या मज़ा, जो
मस्त हो, आठों पहर डूबा हुआ है।।

(तरही गजल)
(मौलिक व अप्रकाशित

Views: 498

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Comment by नाथ सोनांचली on December 7, 2016 at 1:38pm
भाई आद0 मनोज कुमार अहसास जी गजल को पढ़ने और प्रतिक्रिया से नवाजने के लिए कोटिश आभार
Comment by मनोज अहसास on December 7, 2016 at 7:07am
खूखूबसूरत गजल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीयभाई सुरेंद्र नाथ जी
Comment by नाथ सोनांचली on December 7, 2016 at 4:21am
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर अभिवादन। आपने गजल पढकर मुझे आशीष दिया, इसके लिए कोटिश आभार
Comment by नाथ सोनांचली on December 7, 2016 at 4:19am
आद0 डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आप ने गजल को पढ़ा और आशीष दिया, इसके लिए ह्रदय से आभार
Comment by नाथ सोनांचली on December 7, 2016 at 4:18am
आद0 जनाब समर कबीर साहब आदाब, आपको शैर पसंद आये,लिखना सफल हो गया। आपके स्नेह के लिए ह्रदय से आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2016 at 10:48pm
आदरणीय सुरेंद्र जी आपने बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2016 at 5:57pm

ख़त्म करता जा रहा है दश्त इंसाँ
फ़िक्र में अब हर शजर डूबा हुआ है।।------------------ बढ़िया गजल हुयी है

Comment by Samar kabeer on December 6, 2016 at 5:41pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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