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कोई राधा हुई दीवानी क्या (ग़ज़ल 'राज' )

2122  1212  22

जिन्दगी की नई कहानी क्या

हर कोई जानता बतानी क्या

 

मौत  के सामने कोई बचपन

या बुढ़ापा भला जवानी क्या

 

होंसलों से उगा शज़र उसको

ख़ास आबो हवा या पानी क्या

 

तिश्नगी इक नदी बुझाती थी

आज सहरा में है निशानी क्या 

 

कृष्ण देखा है आज क्या तुमने

कोई राधा हुई दीवानी क्या

 

फूल अगर हैं वतन के गुलशन के

फिर हरे और जाफ़रानी क्या

 

गर हो नाज़िम ही कान के कच्चे

सामने उन के हकबयानी क्या

 

आईना हू ब-हू दिखाता है   

‘राज’ उसमे है बदगुमानी क्या 

-------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 940

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 10, 2016 at 11:20am

आद० अनीता मौर्या जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Anita Maurya on December 10, 2016 at 10:13am

वाह.... बहुत खूब ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 7, 2016 at 6:04pm

आद० नरेन्द्र सिंह जी, आपका बहुत बहुत आभार .

Comment by narendrasinh chauhan on December 7, 2016 at 5:51pm

खूब सुन्दर रचना

Comment by Samar kabeer on December 6, 2016 at 8:43pm
बहना, मेरे कहे को मान देने के लिये धन्यवाद ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2016 at 5:17pm

आद० समर भाई जी ,आपका पुन: बहुत बहुत शुक्रिया मिसरे को आपके अनुसार संशोधित कर लूँगी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2016 at 5:16pm

आद०  महेंद्र कुमार जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई उत्साह वर्धन के लिए  दिल से आभारी हूँ |

Comment by Samar kabeer on December 6, 2016 at 4:55pm
'क़ाज़ी' भी अच्छा है,लेकिन 'निज़ामी'से बहुत क़रीब 'नाज़िम'है, इसलिये मैं नाज़िम वाले मिसरे की विकालत करता हूँ बहना ।
Comment by Mahendra Kumar on December 6, 2016 at 4:02pm
आदरणीय राजेश मैम, इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर दाद क़ुबूल कीजिए। आदरणीय समर ने निज़ामी शब्द के प्रति जो ज्ञानवर्द्धन किया है इसके लिए उनका बहुत-बहुत शुक्रिया। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 6, 2016 at 2:54pm

आद० मिथिलेश भैया ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |समर भाई जी हमेशा बेहतर मार्गदर्शन करते हैं |

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