For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1212 1122 1212 1122
(मुज़तस मुसम्मन मखबून)

बना है बोझ ये जीवन कदम थमे थमे से हैं,
कमर दी तोड़ गरीबी बदन झुके झुके से हैं।

लिखा न एक निवाला नसीब हाय ये कैसा,
सहन ना भूख ये होती उदर दबे दबे से हैं।

पड़े दिखाई नहीं अब कहीं भी आस की किरणें,
गगन में आँख गड़ाए नयन थके थके से हैं।

मिली सदा हमें नफरत करे जलील जमाना,
हथेली कान पे रखते वचन चुभे चुभे से हैं।

दिखी कभी न बहारें मिले सदा हमें पतझड़,
मगर हमारे मसीहा कमल खिले खिले से हैं।

सताए भूख तो निकले दिलों से आह हमारे,
नया न कुछ जो सुनें हम कथन सुने सुने से हैं।

सदा ही देखते आए ये सब्ज बाग घनेरे,
'नमन' तुझे है सियासत सपन बुझे बुझे से हैं।


मौलिक व अप्रकाशित

Views: 618

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on November 22, 2016 at 9:27pm
अब ये ग़ज़ल हो गई,बहुत ख़ूब बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 7:35pm

आदरणीय वासुदेव भाई ,
कदम थमे हुए से हैं
बदन झुके हुए से है
उदर दबे हुए से है       ---  सही है  -  थमे , झुके , दबे  -- में     मात्रिक काफिया  मान्य है , और  हुये से हैं  रदीफ  । आप ऐसा किया जा सकता है ।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on November 22, 2016 at 7:13pm
यह ग़ज़ल सुधार के पश्चात पुनः प्रेषित हुई है।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on November 22, 2016 at 4:43pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी और जनाब समर कबीर जी आपका बहुत बहुत आभार। पहले मैं इस गलतफहमी में था कि अ अ अ के स्वर मिला देने से शायद काफ़िया दुरुस्त हो। अब आप गुणीजनों से एक सुझाव चाहता हूँ कि
कदम थमे हुए से हैं
बदन झुके हुए से है
उदर दबे हुए से है
इसी प्रकार अन्य शेरों में कर देने से क्या काफ़िया दुरुस्त हो जायेगा।
Comment by Samar kabeer on November 22, 2016 at 3:09pm
जनाब बासुदेव अग्रवाल 'नमन'जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बाक़ी जनाब गिरराज भाई बता ही चुके है ।
तीसरे शैर में 'आश' नहीं "आस",सातवें शैर में'शब्ज़ बाग'नहीं "सब्ज़ बाग़" ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 1:45pm

आदरणीय वासुदेव भाई , रचना के भाव अच्छे हैं , बहर भी अच्छे से निभाया है आपने , लेकिन काफिया  नही होने से आपकी रचना गज़ल होने से रह गई है । ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , पर गज़ल नही होपायी । प्रयास के लिये आपको हार्द्क बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service