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एक फीलब्दीह/सतविन्द्र कुमार राणा

बह्र:122 122 122 122
-----
नहीं ये किसी को बताया हुआ है
कि इस दिल में तुमको बसाया हुआ है।

रहा जो हमेशा से दुश्मन हमारा
उसे भी गले से लगाया हुआ है।

जमाने को लगने न देंगे खबर भी
खजाना वफ़ा का छुपाया हुआ है।

करम से रहा जो हमेशा ही जालिम
वही अब तो रब का सताया हुआ है।


मुहब्बत वतन से ही ए ‘राणा’ कमायी
तहे दिल से इसको कमाया हुआ है।


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 8:17am
श्रद्धेय सौरभ पांडेय सर,सादर नमन।आपने इस प्रयास को समय देकर विस्तृत रूप से समीक्षा की उसके लिए मैं दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।श्रद्धेय हम ने यानि करता रूप प्रथमा विभक्ति का ही सायास प्रयोग किया था।
अर्थ लिया था हमने ऐसा कुछ भी (किसी को भी) नहीं बताया हुआ है कि तुम्हें दिल में बसाया हुआ है।यहां क्रिया कर्म प्रधान हो रही है यह हमें स्पष्ट हुआ ऐसी गलती नहीं होनी चाहिए थी।
श्रद्धेय मक्ते में इसे/इसको के प्रयोग से सानी मिसरा कर्म की प्रधानता होते हुए "कमाया" क्रिया रूप भी ठीक नहीं बन पड़ रहा है,इसमें मुझे उलझन हो रही है।आदरणीय रवि शुक्ल जी से इस पर इस्लाह हुई थी।उन्होंने भी यही कहा था कि मुहब्बत स्त्रीलिंग है।पर इसे या इसको के प्रयोग से कर्म वाच्य में होने पर यह ठीक प्रतीत हुआ।तूने शब्द के प्रयोग से पुनः प्रथमा और द्वितीया का फिर घाल-मेल हो गया है क्या ?थोड़ी और स्पष्टता की आकांक्षा है आपसे श्रद्धेय!सादर निवेदन!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 7:26am
आदरणीया राजेश दीदी आपके स्नेह और प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 7:25am
आदरणीय रवि शुक्ल जी स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए तह-ए-दिल से आभार!सादर नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 7:24am
आदरणीय समर कबीर साहब,आपकी टिप्पणी सदैव नव ऊर्जा का संचरण करती है।स्नेह और प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन के लिए तह-ए-दिल से आभार।आपका इसारा समझ पा रहा हूँ।सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 7:22am
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ भाई जी स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत हार्दिक आभार!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 19, 2016 at 7:21am
आदरणीय सुरेश भाई जी अनुमोदन एवं प्रोत्साहन के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2016 at 6:46am

ग़ज़ल फिल्बदीह हो या सुचारू रूप से सुगढ़ उसकी भाषा को लेकर ठोस नज़रिया रहे. 

नहीं कुछ भी हमने बताया हुआ है ..  में हमने बताया हुआ है जैसा प्रयोग व्याकरण के लिहाज़ से कितना सही है, इस पर अवश्य ग़ौर करें. हमको बताया हुआ है सही प्रयोग होता है. कारण ? कर्ता की दशा. 

मेरे ख़याल से तो रदीफ़ ही टेढ़ा है जिसका निर्वहन इतना सहज नहीं है. फिर ऐसे रदीफ़ के मिसरे पर चलताऊ कोशिश नहीं होनी थी, आदरणीय सतविन्द्र जी. 

इसी शेर को देखें - 

मुहब्बत वतन की तेरे दिल में 'राणा'
इसे ही तो तूने कमाया हुआ है। ....................  ने विभक्ति के बाद क्रिया कर्म के अनुसार होती है. यहाँ मुहब्बत के अनुसार यानी स्त्रीलिंग होनी है. यानी, ’कमायी हुई है’. फिर तूने का प्रयोग भी गलत प्रतीत हो रहा है, यही तुम्हारी कमायी हुई है जैसा वाक्य होना चाहिए जिसे बहर के साँचे में फिट होना चाहिए. 

सुधीजनों से अपेक्षा थी कि मात्र बहर और अरूज़ न देख भाषायी तौर पर भी सुझाव और सलाह दिया करें.

इस शेर के लिए विशेष बधाई - 

रहा जो हमेशा से दुश्मन हमारा
उसे भी गले से लगाया हुआ है।

सादर

 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 16, 2016 at 11:58pm
आदरणीया राजेश दीदी ग़ज़ल प्रयास आपको पसंद आया,यह सार्थक हुआ।इसे सार्थकता प्रदान करने के लिए सादर हार्दिक आभार।सादर प्रणाम दीदी!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 16, 2016 at 11:57pm
आदरणीय रवि शुक्ल जी सादर नमन।आपके स्नेह का सदैव आकांक्षी हूँ।यह स्नेह और मार्गदर्शन यूँ ही बना रहे।सादर हार्दिक आभार!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 16, 2016 at 11:56pm
आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमन।आपकी टिप्पणी हमेशा ही हौंसले के साथ-साथ इस्लाह से भी युक्त होती है।जो सदैव मेरे लिए काबिले गौर है।आपको यह कोशिश पसन्द आई,यह सार्थक हुई।आपका इशारा मैं समझ पा रहा हूँ।सादर आभार।

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