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मिट्टी मेरे पीछे थी, है मिट्टी मेरे आगे (ग़ज़ल)

बह्र : २२११ २२११ २२११ २२

 

क्या क्या न करे देखिए पूँजी मेरे आगे

नाचे है मुई रोज़ ही नंगी मेरे आगे

 

डरती है कहीं वक़्त ज़ियादा न हो मेरा

भागे है सुई और भी ज़ल्दी मेरे आगे

 

सब रंग दिखाने लगा जो साफ था पहले

जैसे ही छुआ तेल ने पानी मेरे आगे

 

ख़ुद को भी बचाना है और उसको भी बचाना

हाथी मेरे पीछे है तो चींटी मेरे आगे

 

सदियों मैं चला तब ये परम सत्य मिला है

मिट्टी मेरे पीछे थी, है मिट्टी मेरे आगे

----------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 14, 2016 at 5:58pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय विजय निकोर जी

Comment by vijay nikore on October 13, 2016 at 3:14pm

बहुत ही खूबसूरत ख्याल ! मुबारक।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 12, 2016 at 5:24pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि शुक्ला जी। आपने सही कहा मुझे भी ये शे’र सबसे ज़्यादा प्रिय है।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 12, 2016 at 5:23pm

शुक्रिया आदरणीय समर साहब। इस ऐब को अभी दूर किये देते हैं।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 12, 2016 at 5:23pm

शुक्रिया आदरणीया  अर्पना शर्मा जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 12, 2016 at 5:22pm

शुक्रिया आदरणीय सुरेश कुमार जी

Comment by Ravi Shukla on October 12, 2016 at 3:42pm

आदरणीय धर्मेन्‍द्र जी बहुत बढि़या गजल कही है आपने शेर दर शेर मुबारक बाद और दाद हाजिर है 

ख़ुद को भी बचाना है और उसको भी बचाना

हाथी मेरे पीछे है तो चींटी मेरे आगे   आपके इस शेर के खयाल के नयेेपन ने बहुत प्रभावति किया 

दाद हाजिर है । 

Comment by Samar kabeer on October 10, 2016 at 5:47pm
जनाब धर्मेंद्र कुमार सिंह जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
आख़िरी शैर में ऐब-ए-तनाफुर देखिये,'बहुत तो'
Comment by Arpana Sharma on October 10, 2016 at 5:15pm
आ.श्रीमान् धर्मेन्द्र जी- एक प्रभावपूर्ण रचना के लिए बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ ।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 9, 2016 at 8:18pm
आदरणीय धर्मेंद्र जी खूबसूरत प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।

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