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जैसे ही पता चला कुछ आंतकवादी हमारी सीमा में घुस गए और मुठभेड़ में जवान कुर्बान हो रहे हैI आनन फानन में एमरजेंसी मीटिंग बुलाई पक्ष विपक्ष दोनों आये गहन चिंतन शुरू हुआI धीरे धीरे आरोप प्रत्यारोप शुरू हुआI गहन चिंतन गाली गलोच में तब्दील हो गयाI अब तो हद हो गयीI एक दूसरे के कपङे फाड़ने लगेI दोनों तरफ क़ुरबानी दे रहे थेI फर्क बस इतना थाI की एक कुर्सी के लिए तो दूसरा धरती माँ के लिएI "मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by harikishan ojha on September 24, 2016 at 12:07pm

आदरणीया प्रतिभा जी आपको रचना पसंद आई ।मेरा लेखन सार्थक हुआ।सादर

Comment by pratibha pande on September 23, 2016 at 2:10pm

बहुत अच्छी रचना ..देश की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे पर भी अक्सर कुर्सी प्रेम ही हावी रहता है ...हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय  हरिकिशन ओझा जी  

Comment by harikishan ojha on September 22, 2016 at 3:16pm
आदरणीय, सुरेश कुमार जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद हौसला अफजाई के लिएI
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 22, 2016 at 1:23pm
आदरणीय हरिकृष्ण जी सुन्दर व्यंग्य रचना के लिए हार्दिक बधाई । सादर ।

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