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"मैं संजू से शादी कर रही हूँ और हम लोग चेन्नई शिफ्ट कर रहे हैं", घर में घुसते ही उसने माँ से कह दिया| बैग को टेबल पर रखकर उसने फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और पीने लगी, माँ उसे देखे जा रही थी|
"लेकिन चेन्नई शिफ्ट करने की क्या जरुरत है, मुझे तो कोई ऐतराज नहीं है तुम लोगों की शादी से", माँ ने पूछा|
"दर असल उसको एक बढ़िया जॉब मिल गयी है चेन्नई में और मैंने भी अपने ट्रांसफर की अर्जी लगा दी है", उसने सोफे पर बैठते हुए कहा|
"तो अब तुम उसके हिसाब से चलोगी, ख़त्म हो गयी सब बराबरी की बातें", माँ के लहजे में व्यंग ज्यादा था|
"बराबरी आज भी है माँ, अभी उसको एक बढ़िया जॉब मिली है और मेरा भी ट्रांसफर हो सकता है तो फिर क्यों नहीं जाऊँ", उसने माँ को समझाते हुए कहा|
"मैंने अपने उसूलों से समझौता नहीं किया और अकेले तुम्हारी परवरिश की मैंने| और तुम मुझे ही समझा रही हो कि बराबरी क्या होती है", माँ की आवाज़ में निराशा साफ़ झलक रही थी|
"माँ, तुम मान क्यों नहीं लेती कि तुम्हारा फैसला गलत था| आखिर पापा को इतनी बढ़िया जॉब मिली थी तो तुम्हें अपना ट्रांसफर करा लेने में क्या दिक्कत थी| कल को अगर मुझे कोई बढ़िया जॉब मिलती है और संजू का ट्रांसफर हो सकता है तो वो जरूर आएगा मेरे साथ| बराबरी का अर्थ एक दूसरे को समझना भी तो होता है, न कि अपना ईगो ऊपर रखना"|
उसने अपना बैग उठाया और कमरे में चली गयी, पापा की कमी आज भी उसको खलती थी|
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on September 7, 2016 at 9:39am

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी। बहुत मार्मिक और हृदय स्पर्शी प्रस्तुति।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 6, 2016 at 11:06pm
बहुत बढ़िया कथानक चुनते हुए आज के दौर के एक अहम मसले पर बढ़िया कथ्य सम्प्रेषित करती रचना के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय विनय कुमार सिंह जी। यहाँ महिला पात्र बराबरी के आदर्श की बात करते हुए माँ को सबक़ दे रही है किन्तु यदि पुरुष पात्र को कभी ऐसे तबादला कराने की नौबत आये, तो शायद नकारात्मक तस्वीर ही सामने आयेगी। माँ को दोहरा दुःख न पहुँचाने का यहाँ कोई विकल्प तो होता? लेकिन आज की पीढ़ी वास्तव में आत्म-केन्द्रित ही है।

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