For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

  

मई जून का महीना आग बरसाता हुआ सूरज ऊपर से सामर्थ्य से ज्यादा भरी हुई खचाखच बस, पसीने से बेहाल लोग रास्ता भी ऐसा कहीं छाया या हवा का नाम निशान  नहीं बस भी मानों रेंगती हुई चल रही हो| एक को गोदी में एक को बगल में बिठाए बच्चों को लेकर रेवती सवारियों के बीच में भिंची हुई बैठी थी| मुन्नी ने पानी माँगा तो रेवती ने बैग से गिलास निकाल कर पैरों के पास रक्खे हुए केंपर से बर्फ मिला ठंडा ठंडा पानी दोनों बच्चों को पिला दिया |पानी देखकर न जाने कितने अपने होंठों को जीभ से गीला करने लगे|

“बहन जी थोड़ा पानी मुझे भी देदो” एक सवारी ने कहा| रेवती ने उसे पानी  दे दिया |

 “ बेटी  थोड़ा पानी मुझे भी देदो” किसी वृद्ध व्यक्ति ने कहा रेवती ने उसे भी दे दिया |पास खड़े एक दो बच्चों को भी पिला दिया |

इस तरह कई लोगों को उसने पानी पिला दिया केम्पर में थोड़ा सा ही पानी बचा था |

थोड़ी देर बाद उसके बच्चों ने फिर पानी माँगा तो पानी पूरा नहीं पड़ा कम रह गया बच्चों  ने रोना शुरू कर दिया|

 “बस पँहुच रहे हैं बेटा” बार बार कहते हुए रेवती कुछ दूर तक बच्चों को फुसलाती रही |

“कितनी बेवकूफ है ये औरत सारा पानी बाँट दिया अब बच्चों को रुला रही है” कहीं  से आवाज आई|

 बस में अचानक ब्रेक लगा| सड़क के एक किनारे बस को रोककर ड्राइवर गायब हो गया | गर्मी में सब परेशान ड्राइवर को कोसने लगे | थोड़ी देर में ड्राइवर हाथ में दो पानी की ठंडी बोतलें लेकर बस में आया और रेवती को देते  हुए बोला बेटी बच्चों को पिला दो

रेवती हैरानी से देखती हुई बोली “ अंकल इनके पैसे ”.....

“नहीं बेटी रहने दे” ड्राईवर उसकी बात पूरी होने से पहले ही बाकी सवारियों की तरफ घूरते हुए  बोला “जब तू 'बेवकूफ औरत' अपने बच्चों की फिक्र किये बिना इस बस के बीस लोगों की प्यास बुझा सकती है तो क्या मैं इन दो बच्चों की प्यास नहीं बुझा सकता”|  

मौलिक एवं अप्रकाशित           

 ------------------

Views: 1481

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 12, 2016 at 12:10pm

प्रिय राहिला जी,इस पोस्ट पर विलम्ब से आना हुआ आपकी सुन्दर न्यायसंगत प्रतिक्रिया ने लघु कथा का मान बढाया दिल से आभारी हूँ | 

Comment by Rahila on September 3, 2016 at 3:55pm
वाह...कितनी सार्थक, कितनी सुंदर। आत्मा ठंडी हो गयी आपकी रचना पढ़कर।रेवती ने पहले जिस इंसानियत का परिचय दिया ।वहीँ ड्राईवर ने लोगो की बेबकूफाना बातों करारा जबाब देकर उस इंसानियत का मान रख लिया ।बहुत खूब।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2016 at 11:23am
आद० डॉ. विजय शंकर जी,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ दिल से आपका प्रभूत आभार सादर .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2016 at 11:21am

आद० शेख़ उस्मानी जी ,आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लघु कथा धन्य हुई आपने सही कहा आज कल 'अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता' यही  भावना  लोगों में जड  जमाये हुए है स्वार्थपरता इतनी हावी हो गई है की बिना मतलब के तो पत्ता भी नहीं हिलता | निःस्वार्थ सेवा करने वाले सिर्फ मुट्ठी भर होंगे ऐसे में अपनी लेखनी से नव बीज अंकुरित करना हमारा दायित्व बनता है इसी भाव के फलस्वरूप इस लघु कथा का जन्म हुआ | आपका दिल से बहुत  बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2016 at 11:18am

आद० डॉ. गोपाल भाई जी ,आपको लघु कथा बेहतरीन लगी मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2016 at 11:14am

प्रिय प्रतिभा जी ,आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लघु कथा धन्य हुई आपने सही कहा आज कल स्वार्थपरता इतनी हावी हो गई है की बिना मतलब के तो पत्ता भी नहीं हिलता | निःस्वार्थ सेवा करने वाले सिर्फ मुट्ठी भर होंगे ऐसे में अपनी लेखनी से नव बीज अंकुरित करना हमारा दायित्व बनता है इसी भाव के फलस्वरूप इस लघु कथा का जन्म हुआ | आपका दिल से आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2016 at 11:07am

प्रिय कल्पना भट जी आपको लघु कथा पसंद आई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2016 at 11:06am

आद०  समर भाई जी ,लघु कथा के सर्वप्रथम पाठक एवं सराहना दोनों के लिए शुक्रगुजार हूँ लघु कथा के मर्म पर आपका अनुमोदन उत्साहित कर रहा है बहुत बहुत आभार आपका |

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 1, 2016 at 10:20pm
हम ऐसे परिवेश में हैं जहां कर्म को मान्यता नहीं मिल रही है , कहानी में एक सत्कर्म को मान्यता मिल रही है , अतिसुन्दर। बधाई , आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी , सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 1, 2016 at 8:57pm
इंसानियत अभी बाक़ी है। मानवता के रचनात्मक कार्यों को इसी तरह तत्काल प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। बहुत ही बारीक़ी से उस पल को लेखनी ने विस्तार दिया है आपने। आज के दौर में लगभग डहर व्यक्ति पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण आत्म केन्द्रित हो गया है। 'अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता' के ग़लत सिद्धांत पर जो नहीं चलता, उसे पागल या बेवकूफ या संत कह कर व्यंगात्मक टिप्पणियाँ की जाती हैं उस पर। मेरे अनुभव में भी ऐसी घटनाएँ आई हैं। बेहतरीन भावपूर्ण प्रेरक संदेश वाहक प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
19 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service