For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सर्पिला इंसान (लघुकथा)

तेज़ बारिश के कारण पानी उस सांप के बिल में चला गया, वह और उसकी माँ बाहर निकल आये| बाहर उसे अपनी माँ नहीं दिखी| अब तक बिल में ही पले सांप का बाहर की दुनिया देखने का यह पहला मौका था|

 

वह रेंगता हुआ जा रहा था कि उसे एक आवाज़ सुनाई दी, "सांप के बच्चे संपोले....", वह घबरा गया, आज से पहले इतनी कर्कश आवाज़ उसने कभी सुनी नहीं थी| उसने देखा कि एक मोटा-तगड़ा आदमी, एक छोटे बच्चे को मारते हुए चिल्ला रहा था, "साले... चोर, चार रोटियाँ चुरा कर ले जा रहा है?"

 

यह बात सांप की बुद्धि से परे थी, वह रेंग कर आगे चला गया|

 

वहां उसने देखा एक शराबी, एक औरत से चीख कर कह रहा है, "मैं वो सांप हूँ, जिसका काटा पानी भी नहीं मांगता है, या तो अपने बाप से पैसे लेकर आ, या फिर आज रात मेरे गॉडफादर के पास...."

 

सांप अपना ज़हर अंदर ही लिए चुपचाप वहां से रेंग गया|

 

आगे उसने देखा, भीड़ जमा है और दो आदमी लड़ रहे हैं, एक आदमी चिल्लाते हुए कह रहा था, "ये भाई है? मेरा पूरा रुपया हड़प लिया और मेरी पत्नी के साथ ही.... आस्तीन का सांप है यह|"

 

इतना चिल्लाना सुनकर सांप के सिर में दर्द होने लगा, वह वहां से दूर रेंगा, लेकिन  चिल्ला रहे आदमी ने उसे देख लिया और उसे एक डंडा मार दिया|

 

घबरा कर वह एक झाड़ी में छिप गया| वहीँ उसे आवाज सुनाई दी, "सांप तो निकल गया, अब लकीर पीटने से क्या फायदा, तू अब अपनी पत्नी को सम्भाल|"

 

इतने में सांप की माँ वहां आ गयी, सांप ने उसे सारी बात बताई| माँ ने पूछा, "किसने मारा तुझे"

सांप ने इशारे से बताया तो माँ ने फिर आश्चर्यचकित होकर पूछा,

"वह बिना आस्तीन के कपड़े पहने आदमी?"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 914

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 17, 2016 at 12:36pm

लघुकथा के इस प्रयास पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु बहुत-बहुत आभार आदरणीया दी कल्पना भट्ट जी|

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 15, 2016 at 8:44pm
अदभुत कथा । हार्दिक बधाई आदरणीय । आपका अलग ही अंदाज़ वआह्ह् ।।
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 15, 2016 at 7:50pm

हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपाई जी, लघुकथा के इस प्रयास पर आपकी उपस्थिति और अमूल्य प्रतिक्रिया से मेरा मनोबल उच्च हुआ है| सादर, 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 15, 2016 at 7:49pm

सादर आभार आदरणीया नीता कसार जी, यह प्रयास आपको ठीक लगा और आपने अपनी टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन किया| 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 15, 2016 at 7:48pm

आदरणीया राहिला जी, लघुकथा के इस प्रयास के मर्म को जान कर आपने अपनी प्रतिक्रिया द्वारा मेरा उत्साहवर्धन किया, इस हेतु बहुत-बहुत आभार|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 15, 2016 at 7:47pm

जनाब समर कबीर जी साहब, प्रणाम| इस कोशिश पर आपने अपनी प्रतिक्रिया से जो मेरी हौसला अफज़ाई की है, उसके लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 15, 2016 at 7:45pm

आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी, हार्दिक आभार, रचना के इस प्रयास पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया से मेरा बहुत उत्साहवर्धन हुआ है| सादर,

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 15, 2016 at 7:44pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशिल सरना जी, आपको यह प्रयास ठीक लगा और आपने अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से रचना को नवाज़ा|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 15, 2016 at 7:43pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब, बहुत आभार आपका, लघुकथा के इस प्रयास के मर्म को समझ कर, आपने अपनी टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला अफज़ाई की|

Comment by annapurna bajpai on August 13, 2016 at 10:41am

वाह क्या खूब कथा हुयी है आदरणीय छतलानी जी । बधाई आपको । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
10 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
12 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
49 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
53 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
54 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
55 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"ओह!  सहमत एवं संशोधित  सर हार्दिक आभार "
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service