For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डेढ़ साल हो चुका था नकुल को गये आज भी उस घर की दीवारों चौखटों से सिसकियों  की आवाज सुनाई देती है बगीचे के हरे सफ़ेद लाल फूल उस तिरंगे झंडे की याद दिलाते हैं जिसमें लिपटा हुआ उस घर का चिराग कुछ वक़्त के लिए रुका था | नई नई दुल्हन की कुछ चूड़ियाँ आज भी उस तुलसी के पौधे ने पहन रक्खी हैं | घर में से बीमार माँ की खाँसी की आवाजें कराह में बदलती हुई सुनाई देती हैं|

किसी वक़्त प्रतिदिन पांच किलोमीटर दौड़ने वाले रामलाल की लाठी की ठक-ठक सुबह-सुबह सुनाई दी तो  बदरी प्रसाद ने गेट खोल दिया दोनों के गेट आमने सामने होने पर भी बहुत दिनों बाद दोनों का मिलना हुआ|  मूढे पर बैठने के बाद धीरे- धीरे इधर उधर की बातों का सिलसिला चल निकला पर आज हमेशा की तरह गूँजने वाले उनके ठहाके गायब थे बदरी प्रसाद हर संभव कोशिश कर रहे थे कि रामलाल के बेटे का प्रसंग बातों के बीच न आये |

थोड़ी ही देर में सामने दिखाई दिया रामलाल की बहू बाहर गमलों में नित्य की भांति  पानी दे रही है|

रामलाल ने मुस्कुराते हुए कहा “जब से बेटा गया है इन गमलों की नियमित देखभाल बहू खुद ही करती है मुझे नहीं करने देती” |

बदरी नाथ न चाहते हुए भी बोल पड़ा “देख रामलाल बहुत दिनों से मैं ये कहने की हिम्मत जुटा रहा था सो आज वक़्त आ ही गया ,बहू तुम्हारा इतना ख़याल करती है तुम्हारे सूखे गमलों तक को जिन्दगी दे रही है पर क्या तुमने कभी इस जीते जागते गमले के सूखेपन को  देखा ?? क्या सोचा तुम्हारे बाद इस गमले का क्या होगा”

सुनते ही आँखों के गीलेपन को छुपाते हुए रामलाल उठ खड़ा हुआ बोला “बदरी तेरे यहाँ वो अखबार आता है उसका मेट्रीमोनियल वाला पेज देना”

.

मौलिक एवं अप्रकाशित   

Views: 1355

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2016 at 12:21pm
आद० राजेंद्र कुमार जी आपको लघु कथा पसंद आई आपका बहुत-बहुत शुक्रिया|

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2016 at 12:09pm
प्रिय सीमा सिंह जी,आपका बहुत बहुत आभार |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2016 at 12:04pm
आद० शेख़ शहजाद उस्मानी जी ,आप जैसे कहानीकार से सराहना पाना बहुत मायने रखता है लघु कथा के मर्म ने अपना प्रभाव छोड़ा मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया दिल से आभार आपका |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2016 at 12:02pm
आद० डॉ.विजय शंकर जी आपका बहुत-बहुत आभार|

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2016 at 11:53am
आद० अन्नपूर्णा जी,आपको ये लघु कथा पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया आपका |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2016 at 11:53am
आद० अन्नपूर्णा जी,आपको ये लघु कथा पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया आपका |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2016 at 11:53am
आद० अन्नपूर्णा जी,आपको ये लघु कथा पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया आपका |
Comment by Sushil Sarna on August 9, 2016 at 8:38pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी निःशब्द हूँ आपकी इस सामाजिक सोच को सूखे गमले को प्रतीक बनाकर इतनी मार्मिकता से प्रस्तुत करने के लिए। इस संदेशप्रद सार्थक लघु कथा की प्रस्तुति के लिए दिल बधाई स्वीकार करें।

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on August 9, 2016 at 3:53pm

 बहुत सार्थक कथा हुई है राजेश दीदी. कई बार उम्र की मार मे आश्रित व्यक्ति यह सोचना ही नही चहता है ऐसे मे मित्र द्वारा दिया सुझाव   बडा अनमोल साबित होता है.पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करती रचना के लिए बधाई आपको

Comment by Rajendra kumar dubey on August 9, 2016 at 8:03am
आदरणीय राजेश कुमारी जी बहुत प्रेरणा प्रद लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
4 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
8 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service