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2122 2122 22

अपने बच्चों को आज़माते क्यूँ हो?
निर्धनों को यूँ सताते क्यूँ हो?

वो तो वैसे ही है अभिशापित; फिर।
ख़्वाब मुफ़लिस को दिखाते क्यूँ हो?

जो कि रिश्ते में #भसुर# है धन का।
उसको महफ़िल में बुलाते क्यूँ हो?

जिसकी कुटिया में नहीं दरवाज़े।
बाप बेटी का बनाते क्यूँ हो?

मैं ख़फ़ा हूँ तेरी मनमानी से।
सामने आओ लजाते क्यूँ हो?

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 5, 2016 at 11:58am
आदरणीय गिरिराज सर सादर प्रणाम, ग़ज़ल को आशीर्वाद देने के लिए बहुत बहुत आभार।

#भसुर# पति के बड़े भाई को कहते हैं।

हमारे यहाँ #भयो(अनुज वधु)# अपने #भसुर(ज्येष्ठ) से# तथा भसुर अपनी भयो की परछाईं से भी बचते हैं।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 5, 2016 at 11:54am
आदरणीय कल्पना भट्ट मैम सादर आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2016 at 11:26am

आदरनीय पंकज भाई , गज़ल अच्छी कही है , बधाई आपको ।

#भसुर#    -- समझ नही पाया ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 2, 2016 at 10:21pm
जिसकी कुटिया में नहीं दरवाज़े।
बाप बेटी का बनाते क्यूँ हो?

मैं ख़फ़ा हूँ तेरी मनमानी से।
सामने आओ लजाते क्यूँ हो? बहुत खूब । हार्दिक बधाई आदरणीय ।

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