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गीत,हरिगीतिका छ्न्द पर प्रथम प्रयास

नारी
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अबला बनीं सबला अभी तो हम उन्हें सम्मान दें
उत्साह से वे कर रहीं हर काम को अब मान दें

चलते रहे यह मानकर कुछ कर नहीं सकती कभी
कमजोर उनको मानते अब तक चले हैं जी सभी
हैं जानते यह हम सभी सबला हुई अब नार हैं
जीवन उन्हीं से चल रहा,वे ही सबल आधार हैं
नारी सही हैं बढ़ रहीं अपने वतन पर जान दें
उत्साह से वे कर रहीं हर काम को अब मान दें।

इक कल्पना ने था रचा इतिहास सब हैं जानते
आकाश पर लहरा गई थी जो ध्वजा पहचानते
लक्ष्मी बनीं थी काल ले तलवार गौरी फ़ौज पे
दुर्गावती ने वार दी थी जान कौमी मौज पे
संकट पड़े जो कौम पर मिटने नहीं ये आन दें
उत्साह से वे कर रहीं हर काम को अब मान दें।

नारायणी भी नाम है जिसका उसे पहचान लें
ये बढ़ रही हर क्षेत्र में सब आज यह भी जान लें
घर ही नहीं अब हर जगह आया इन्हीं का दौर है
अवतार दुर्गा की सभी हैं ये नहीं कुछ और हैं
अपने इरादों से बढ़ा वे देश की भी शान दें
उत्साह से ये कर रही हर काम को अब मान दें।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by pratibha pande on August 4, 2016 at 10:30pm

वाह.. नारी वंदन करती शानदार रचना .  हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सतविंदर जी .  .अंतिम बंद की टेक में ये / वे  

कृपया ध्यान दे...

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