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तुम मुझसे मिलने जरूर आओगी (कविता)

तुम मुझसे मिलने जरूर आओगी

जैसे धरती से मिलने आती है बारिश

जैसे सागर से मिलने आती है नदी

 

मिलकर मुझमें खो जाओगी

जैसे धरती में खो जाती है बारिश

जैसे सागर में खो जाती है नदी

 

मैं हमेशा अपनी बाहें फैलाये तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा

जैसे धरती करती है बारिश की

जैसे सागर करता है नदी की

 

तुमको मेरे पास आने से

कोई ताकत नहीं रोक पाएगी

जैसे अपनी तमाम ताकत और कोशिशों के बावज़ूद

सूरज नहीं रोक पाता अपनी किरणों को

-----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 18, 2016 at 12:32pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुनील जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 18, 2016 at 12:31pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रक्ताले जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 18, 2016 at 12:31pm

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब समर साहब। तबादले के कारण पिछले कुछ महीनों से अस्त व्यस्त चल रहा हूँ इस वजह से इन दिनों सक्रियता कम है।

Comment by shree suneel on July 18, 2016 at 2:40am
व्वाहह! बहुत सुन्दर ! प्यारा भाव.. इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको आदरणीय धर्मेंद्र जी. सादर.
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 17, 2016 at 10:22am

तुमको मेरे पास आने से

कोई ताकत नहीं रोक पाएगी

जैसे अपनी तमाम ताकत और कोशिशों के बावज़ूद

सूरज नहीं रोक पाता अपनी किरणों को...................वाह ! वाह ! खूब सुंदर पंक्तियाँ.

आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी सादर इस सुंदर प्रस्तुति पर बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

Comment by Samar kabeer on July 16, 2016 at 5:05pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब,बहुत दिन बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली ।
बहुत बढ़िया कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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