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ऐसा भी एक मन्ज़र...

 

पैगाम लिए पंछी चल दिए सुबह को बुलाने ,
बांसुरी से गुजरती शीतल हवा कुछ गुनगुनाई |
 
पीली धूप पहन किरणों ने झाँका आसमान से ,
बाहें फैलाकर मौसम ने फिर ली अंगड़ाई |
 
सिमटने लगी रज़ाई नर्म कोहसारों की ,
नई नवेली दुल्हन सी कलियों ने पलकें उठाई |
 
ओस के कतरों से गीली पगडंडियों पर ,
झूलने लगी हरे पत्तों की काली परछाई |
 
कहीं दूर किसी छत पर एक आँचल है लहराया ,
ज़हन में ख्यालों की नज़्म सरसराई |  

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Comment by आशीष यादव on May 12, 2011 at 1:28pm
subah ka sundar warnan.
Comment by Veerendra Jain on May 6, 2011 at 11:15am
Aacharya ji... aapse sarahna paakar main dhanya hua...bahut bahut aabhar ...
Comment by Veerendra Jain on May 6, 2011 at 11:14am
Arun ji...hardik aabhar... is rachna ko pasand karne ke liye...
Comment by sanjiv verma 'salil' on May 2, 2011 at 4:06pm
पैगाम लिए पंछी चल दिए सुबह को बुलाने ,

बांसुरी से गुजरती शीतल हवा कुछ गुनगुनाई

 

bahut khoob.

Comment by Abhinav Arun on April 29, 2011 at 7:15pm

वाह नए भाव नए मंज़र नया अंदाज़ इस रचना की दिल से तारीफ करता हूँ वीरेंद्र जी |

 

Comment by Veerendra Jain on April 29, 2011 at 12:28pm
Amitesh ji , Ganesh ji , Saurabh sir...rachna pasand karne ke liye bahut bahut dhanyawad...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2011 at 2:01pm

सिमेण्ट और कंक्रीट के बेशऊर ऊसर में शीतल भोर, नरम ओस, सुहानी किरणों और गदबदाये पक्षियों की बातें मन-हृदय को नैसर्गिक ऊर्जा से भर देती हैं. आँचल के बेतकल्लुफ़ फहराने की कल्पना मात्र से अंतर में कुछ सरसराना नज़्म नहीं तो और क्या है..!! .. बहुत अच्छे.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 28, 2011 at 10:39am
कहीं दूर किसी छत पर एक आँचल है लहराया ,
ज़हन में ख्यालों की नज़्म सरसराई | 
सुंदर रचना , अंतिम दो पक्ति ज्यादा रुचिकर लगी , बधाई आपको |
Comment by अमि तेष on April 28, 2011 at 12:17am
ओस के कतरों से गीली पगडंडियों पर ,
झूलने लगी हरे पत्तों की काली परछाई |
bahut khub.....wah..

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