For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - रोज उल्टियाँ वैचारिक कर देने वालों -- गिरिराज भंडारी

22  22  22   22   22   22 – बहरे मीर

आज उठाये घूम रहे हैं जिनको सर में

वो सब पटके जाने लायक हैं पत्थर में

 

अपनी बीमारी को बीमारी कह सकते

इतनी भी ताक़त देखी क्या, ज़ोरावर में ? (ताक़तवर)

 

फेसबुकी रिश्ते ऐसे भी निभ जाते हैं

वो अपने घर में कायम, हम अपने घर में

 

रोज उल्टियाँ वैचारिक कर देने वालों

चुप्पी साधे क्यों रहते हो कुछ अवसर में ?

      

जब समाचार में गंग-जमन का राग लगे, तुम 

मन्दिर-मस्ज़िद खेल खिलाओ किसी शहर में

 

तुम अपने को उन लोगों में जोड न लेना

बहुत फर्क है गद्दारी में और गदर में

 

जब से भाषायी झग़ड़े का त्याग किया है

वो कहते हैं तेरा मिसरा नहीं बहर में

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

Views: 418

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 9:25am

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , सराहना कर रचना को आशीष देने के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 9:24am

आदरणीय रवि भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका । आपने सही कहा आजकल इसी बहर का अभ्यास कर रहा हूँ , ये बहर मात्रा पर कम लय पर जियादा आधारित है , जिसे साधना ज़रूरी है ।

Comment by vijay nikore on July 10, 2016 at 2:14pm

 // 

फेसबुकी रिश्ते ऐसे भी निभ जाते हैं

वो अपने घर में कायम, हम अपने घर में//

//आज उठाये घूम रहे हैं जिनको सर में

वो सब पटके जाने लायक हैं पत्थर में//

बहुत ही ज़ोरदार ख्याल हैं। आपको हार्दिक बधाई, भाई गिरिराज जी।

 

Comment by Ravi Shukla on July 8, 2016 at 11:27am

आदरणीय गिरिराज जी अाज कल इस बहर पर आप बहुत काम कर रहे है और अच्‍छा कर रहे है इस गजल के लिए बहुत बहुत बधाई स्‍वीकार करें 

तुम अपने को उन लोगों में जोड न लेना

बहुत फर्क है गद्दारी में और गदर में  अच्‍छा शेर हुआ है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2016 at 10:16am

आदरनीय अशोक भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

// वो सब पटके जाने लायक हैं पत्थर में //

आदरणीय इस मिसरे मे तो सभी  शब्द   फा ( 2 ) मात्रिक ही लिया हूँ , अतः मुझे लगता है शायद पढ़के के ढंग मे कुछ अंतर होगा , इस मिसरे मे कहीं मात्रा गिरी ही नही है ! फिर भी कुछ सलाह हो तो स्वागत है , मै सुधार के लिये तत्पर हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 8, 2016 at 10:10am

आदरनीय महेन्द्र भाई , सराहना के लिये आपका आभार ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 6, 2016 at 10:21pm

जब से भाषायी झग़ड़े का त्याग किया है

वो कहते हैं तेरा मिसरा नहीं बहर में............वाह ! वाह ! मिसरे तो सारे बह्र में हैं साहब. मगर उठाये सर में, पटके पत्थर में, कुछ खटका है. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on July 6, 2016 at 11:22am
वाह! क्या ग़ज़ब का मतला लिखा है! इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी, सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service