For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक वैचारिक रचना --'' भीड़ '' ( गिरिराज भंडारी )

एक वैचारिक रचना --'' भीड़ ''

********************************

व्यक्तियों के समूह को भीड़ कह लें  

अलग अलग मान्यताओं के व्यक्तियों का एक समूह

जो स्वाभाविक भी है

क्योंकि मान्यता व्यक्तिगत है

 

पर भीड़ विवेक हीन होती है

क्योंकि विवेक सामोहिक नही होता

ये व्यक्तिगत होता है

हाँ , समूह का उद्देश्य एक हो सकता है , पर

प्रश्न ये है कि क्या है वह उद्देश्य  ?

 

भीड़ हाँकी जाती है

भेड़ों की तरह

गरड़िये के द्वारा , अपने किसी उद्देश्य के लिये

 

और गरड़िया कोई भी बन सकता है

आप भी, मै भी

बस चार भेंड़ों की ज़रूरत है

व्यक्ति भी अपने आप मे अविवेकी हो सकता है

पर यही कमी , खासियत मानी जाती है

भेड़ बन जाने के लिये

 

बन चुके हैं कितने ही ,

अब भी बन रहे हैं और बनते रहेंगे

क्योंकि अविवेकी बनने के फायदे बहुत हैं

और उसपे करेले पर नीम
विवेकी होने के नुक्सान भी कम नही हैं

 

सम्भावना तो ये भी है कि ,

आज के भेंड़ कल गरड़िया भी जायें

भेड़ से गरड़िये मे रूपांतरण संभव है

फिर कौन नुक्सान उठाये

है न ?

*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 533

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2016 at 8:29pm

आदरणीय अशोक भाई , रचना के सराहना और सहमति के लिए आपका हार्दिक आभार । आपकी सलाह  के विषय मे विचार कर रहा हूँ आदरणीय , क्यों कि अविवेकी हो सकता है कहने से मेरा मतलब ये है कि हर आदमी अविवेकी नही होता , कोई हो भी सकता है । मुझे इसलिये सकता कहना ठीक लग रहा है ।
और करेले पर नीम , कहावत के रूप मे नही लिखा हूँ , बस एक सच बता रहा हूँ , इस्लिये पूरा नही लिखा । अभी सोच रहा हूँ , और अन्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा भी है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2016 at 8:21pm

आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 5, 2016 at 12:24am

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर, आपने जो कहना चाहा है उसको हमारे यहाँ कहते हैं 'एडे बनके पड़े खाना' सच है आज के दौर में ऐसे बहुत लोग मिल जायेंगे. सुंदर प्रस्तुति हुई है. फिरभी "व्यक्ति भी अपने आप मे अविवेकी हो सकता है

पर यही कमी , खासियत मानी जाती है

भेड़ बन जाने के लिये" ..........यहाँ 'सकता' शब्द का प्रयोग सही नहीं लग रहा है.

"और उसपे करेले पर नीम" मुहावरा है नीम चढ़ा करेला. सादर.

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 4, 2016 at 7:09pm

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति आज के माहौल पर अच्छा तंज किया है |बहुत बहुत बधाई आद० गिरिराज जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 4, 2016 at 3:46pm

आदरणीय आशुतोष भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 4, 2016 at 1:43pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब इस चितन प्रधान रचना के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service