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फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ैलुन,फ़ा
.
इक तरफा यारी यार निभाऊँ क्यूँ कर ।।
फोकट में डेली चाय पिलाऊँ क्यूँ कर ।।(1)

रोज सुबह तू दूध जलेबी ठसक रहा,
ऊपर से नामी ग़ज़ल सुनाऊँ क्यूँ कर ।।(2)

बन हीरो भटक रहा खुर्राट निठल्ला,
तेरा खरचा अब और चलाऊँ क्यूँ कर ।।(3)

बनिया भी अपना पैसा माँग रहा है,
तेरी खातिर मैं नाक छुपाऊँ क्यूँ कर ।।(4)

सारे लफड़े-झगड़े तू देख सलट खुद,
तेरे लफड़ों में टाँग अड़ाऊँ क्यूँ कर ।।(5)

उस लड़की के चक्कर में मर जायेगा,
तेरी खातिर मैं भी मर जाऊँ क्यूँ कर ।।(6)

आम चुरा कर लाया फिर सबनें खाये,
गुठली के इतनें दाम चुकाऊँ क्यूँ कर ।।(7)

अपनी हालत पंक्चर है कब समझेगा,
तुझसे मैं सारे 'राज़' छुपाऊँ क्यूँ कर ।।(8)


कवि- "राज बुन्दॆली"
30/06/2016
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 1, 2016 at 7:43pm

आदरणीया,,,,राज कुमारी,,जी,,,आभार नमन,,,बिल्कुल,,सही सुज्हाव दिया आपने सहर्ष स्वीकार है,,, मूल प्रति में सुधार कर लिया है मैने,,,,,धन्यवाद,,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 1, 2016 at 6:53pm

वाह वाह आद० राज बुन्देली जी हास्य रस का खूब आनंद आया |सभी अशआर मजेदार हैं तहे दिल से बधाई लीजिये 

ऊपर से नामी ग़ज़ल सुनाऊँ क्यूँ कर---इसकी बह्र जांच लें---- नामी नज्म कर  सकते हैं 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 1, 2016 at 6:02pm

आदरणीय,,,,सुशील सारना जी आभार,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 1, 2016 at 6:00pm

अदरणीय,,,,,गिरिराज भंडारी सर जी आभार,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on July 1, 2016 at 5:59pm

आदरणीय,,,,,अशोक कुमार जी बहुत बहुत धन्यवाद सर जी

Comment by Sushil Sarna on July 1, 2016 at 3:36pm

इक तरफा यारी यार निभाऊँ क्यूँ कर ।।
फोकट में डेली चाय पिलाऊँ क्यूँ कर ।।(1)

रोज सुबह तू दूध जलेबी ठसक रहा,
ऊपर से नामी ग़ज़ल सुनाऊँ क्यूँ कर ।।(2)

वाह अादरणीय बुंदेली जी वाह .... हास्य रस को समाहित करते हुए अापने बड़ी ही उम्दा ग़ज़ल पेश की है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2016 at 9:33am

आदरनीय राज भाई , बढ़िया हजल कही आपने , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 1, 2016 at 8:00am

आम चुरा कर लाया फिर सबनें खाये,
गुठली के इतनें दाम चुकाऊँ क्यूँ कर........वाह ! बहुत खूब.

आदरणीय राज बुन्देली जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल हुई है. दिली दाद कुबूल फरमाएं.सादर.

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