For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - चाकू पिस्टल ही समझाओ, अच्छा है - गिरिराज भंडारी

22 22  22  22  22  2

तुम केवल परिभाषा जानो ,अच्छा है

और अमल सब हमसे चाहो, अच्छा है

 

देव सभी हो जायें तो , मुश्किल होगी

पाठ लुटेरों का भी रक्खो , अच्छा है

 

पत्थर जब जग जाते हैं, श्री चरणों से

इंसा छोड़ो , उन्हें जगाओ, अच्छा है

 

समदर्शी होता है ऊपर वाला, पर

छोड़ो भी , तुम काटो- छाँटो, अच्छा है

 

सूरज ,चाँद, सितारे, दुनिया को छोड़ो

चाकू पिस्टल ही समझाओ, अच्छा है

 

धड़ सारा कालिख में है यूँ रंगा हुआ

कोशिश कर के, पूँछ बचा लो, अच्छा है

 

प्रजातंत्र  है , अपने पापों से बचने

तुम सियार की टोली पालो, अच्छा है

 

सूरज फूँको से कब बुझता है, फिर भी

सभी निशाचर फूँके मारो , अच्छा है

 

ओम, विरोधों में पड़ता है, पड़ जाये

ट्वींकल ट्वींकल तुम भी गाओ, अच्छा है

**************************************
गिरिराज भंडारी

Views: 1009

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2016 at 7:23pm
परिभाषायें कहाँ , शब्द उछालो , अच्छा है ,
अपने अर्थ हमें समझाओ वो कैसे अच्छा है।
एक विशिष्ट परिवेश जिसमें सब एक दूसरे को मूर्ख मान कर बैठे हैं , अपनी अपनी हांक रहें हैं , अच्छा है। लेकिन खुद को ज्ञानी मान रहें हैं कहाँ अच्छा है।
हर शब्द आयातित पर अर्थ जो हम बतायेँ , शब्दकोश जो हम बनाएं।
पढ़े लिखे को बेकार बतायें , अच्छा है ,
फर्जी डिग्री खूब बिकाये , अच्छा है।
कहाँ तक बताएं , कितना लिखें , अंतहीन है , आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , बहुत बहुत बधाई , इस युग को समर्पित रचना के लिए , सादर।
Comment by pratibha pande on June 8, 2016 at 6:55pm

ओम, विरोधों में पड़ता है, पड़ जाये

ट्वींकल ट्वींकल तुम भी गाओ, अच्छा है.... क्या बात है..  बहुत  सटीक बात कही है आपने आज के माहौल के सन्दर्भ में ,  बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय गिरिराज जी ...सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 8, 2016 at 6:50pm

ये भी अच्छा है !..:-)) 

सही है आदरणीय गिरिराज भाई, ये कहाँ की प्रगतिशीलता कि हर दफ़े एकपक्षीय हुए एक वर्ग को या तो कोंसते रहें या उसकी खिल्ली उड़ायें और अपनी पर आये तो तौबः-तौबः करते हुए कानों के लुलुए छुए जायें !

आपकी इस ग़ज़ल के सापेक्ष दो बातें अलग-अलग समझनी होंगी. पहली कि ऐसी जागरुक ग़ज़लें देखा-देखी नहीं कही जा सकतीं. तब तो और जब संप्रेषणीयता की तो छोड़िये, मिसरे ही साधने में हवा निकलती हो. क्योंकि ऐसी कहन के लिए जिस संचेतना की आवश्यकता होती है, वह अगर अरुज़ का साथ न ले पाये तो किया-कराया सटीक तो क्या, हास्यास्पद अधिक दिखने लगता है. इस दम पर आपकी कोशिश का बल बहुत सही दिशा में प्रभावी है. दूसरी बात ये, कि ज़मीनी मुहावरों पर ज़बर्दस्त पकड़ हो. यह कहन के ’विट’ को और मारक कर देता है. ऐसे में भी संप्रेषणीयता के सापेक्ष निहितार्थ की धार प्रखर होनी अत्यंत आवश्यक है. इस विन्दु पर थोड़ी और कोशिश आवश्यक लगी है. मुहावरे तो हैं लेकिन संयोजन को और सटीक होना था, ताकि संप्रेषणीयता एकदम से तीर की तरह लगे. लेकिन, मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि इस विन्दु पर प्रस्तुतीकरण में कोई असहजता है. बल्कि, जिस ऊँचाई पर आप कथ्य को ले जाना चाह रहे हैं, उसके हिसाब से मैं कह रहा हूँ. क्योंकि आपने स्वयं ही इस ग़ज़ल का मानक-विन्दु औसत से बहुत ऊपर रखा हुआ है. यह तथ्य मतले से ही समझ में आजाता है. इसी के सापेक्ष आदरणीय रवि भाई के प्रश्न समीचीन और सटीक लगे हैं.

आपको इस प्रखर और मुखर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .. यह तेवर बना रहे, आदरणीय.

शुभ-शुभ

Comment by Shyam Narain Verma on June 8, 2016 at 5:45pm
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
Comment by Anuj on June 8, 2016 at 4:59pm

हाँ ये कुछ बात हुई ! जबान का जायका और व्यंग का तड़का. कोई आपकी राजनीति से सहमत हो न हो ये अलग मसाला है लेकिन ग़ज़ल में थोड़ी राजनीति का होना भी जरूरी. आपकी ग़ज़ल आपनी बात प्रभावी ढंग से पहुँचाने में कामयाब है. दुआ है आपकी धार और तेज हो...

Comment by maharshi tripathi on June 8, 2016 at 2:18pm
एक अलग अंदाज़ में आपने वात कही है,बधाई सर जी !!!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2016 at 2:05pm

आदरणीय सुशील भाई , हौसला अफज़ाई के लिएय आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2016 at 2:05pm

आदरणीया राजेश जी , आपकी सराहना ने मेरा उत्साहवर्धन हुआ , आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2016 at 2:04pm

आदरनीय रवि भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार ।

प्रजातंरे वाले शे र मे आपकी सलाह में भी वही भाव है , जो मेरे शेर मे है , दोनों सही हैं

आपने सही कहा है इस मिसरे मे एक फा कम है -- ओम, विरोधों पड़ता है, पड़ जाये
दरासल बीच मे एक में रह गया है -- उसे कृपया ऐसे पढ़े --

ओम, विरोधों में पड़ता है, पड़ जाये

Comment by Sushil Sarna on June 8, 2016 at 1:46pm

तुम केवल परिभाषा जानो ,अच्छा है
और अमल सब हमसे चाहो, अच्छा है

देव सभी हो जायें तो , मुश्किल होगी
पाठ लुटेरों का भी रक्खो , अच्छा है

वाह क्या ख्यालात हैं आदरणीय गिरिराज जी ... शेर दर शेर दाद कबूल फरमाएं सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
16 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service