For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा- ग़ज़ल (जिसकी जितनी चाह है, वो उतना गमगीन (गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22   22

बात सही है आज भी , यूँ तो है प्राचीन
जिसकी जितनी चाह है , वो उतना गमगीन

फर्क मुझे दिखता नहीं, हो सीता-लवलीन

खून सभी के लाल हैं औ आँसू नमकीन

क्या उनसे रिश्ता रखें, क्या हो उनसे बात

कहो हक़ीकत तो जिन्हें, लगती हो तौहीन   

सर पर चढ़ बैठे सभी , पा कर सर पे हाथ

जो बिकते थे हाट में , दो पैसे के तीन

 

बीमारी आतंक की , रही सदा गंभीर

मगर विभीषण देश के , करें और संगीन

 

कुछ तो सचमुच भैंस हैं , बाक़ी भैंस समान

कोई ये समझाये अब , कहाँ बजायें बीन

 

घर की सारी झंझटें , हो जायेंगी साफ

पिछले हों संस्कार सब , सुविधा अर्वाचीन

********************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 2666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 18, 2016 at 10:53pm

इस शानदार दोहा ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।

Comment by Sulabh Agnihotri on July 16, 2016 at 3:57pm

गिरिराज जी इस बहर को - फैलुन फैलुन फाइलुन फैलुन फैलुल फाय’ क्यों नहीं कह सकते।
मेरे विचार से तो दोहे के लिये तो यही बननी चाहिये।
मैं इसे ऐसे भी कहता हूँ - गाना गाना गीत गा, गाना गाना गीत।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 9:29am

आदरणीय शेख शहज़ाद भाई , आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 9:28am

आदरणीय  प्रधान संपादक योगराज भाई , इस ग़ज़ल को फीचर कर ग़ज़ल का मान बढ़ाने के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 14, 2016 at 2:56pm
इस बेहतरीन दोहा-ग़ज़ल को मंच पर फ़ीचर-ब्लोग-पोस्ट के रूप में चयनित होने पर तहे दिल बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरम जनाब गिरिराज भंडारी साहब।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 12, 2016 at 11:34pm

:-))

आप वही निरे बच्चे निकले, बंधु ! इतने दिनों मे बदला कुछ भी नहीं ! ... जाइये प्रसन्न रहिये। ..

वैसे आपके किये-कराये का कुछ अता-पता न चला । .. क्या वही पुरानी खुन्नस !?...  

कुछ अरसे बाद आपका फिर इंतज़ार रहेगा, आपकी किसी फ़ेक आइ-डी के साथ.. :-))

शुभ शुभ 

Comment by Anuj on June 12, 2016 at 10:26pm

प्रात:वन्दनीय सौरभ महाशय,

'मुझे लगता है कि आपको मेरे इस मंच होने से बहुत कष्ट है, लेकिन ये कष्ट आपको आज के बाद नहीं उठना पड़ेगा.'

लगता है आपने मेरी इस पोस्ट का आशय नहीं समझा था इसलिए ये स्पष्ट कर दूं की यह मेरी इस मंच पर आखिरी पोस्ट है. पीठ पीछे जितनी गालियां और धमकियाँ देनी है दे लीजियेगा .

प्रणाम !!!

Comment by Anuj on June 12, 2016 at 10:01pm

प्रातःवन्दनीय सौरभ महाशय,

आप आपनी कमजोरी को धमकियों और साहित्यिक गालियों से ढककर 'खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे वाली' वाली कहावत क्यों चरितार्थ कर रहे हैं. मुझे आप बेकार डराने और धमकाने की कोशिश कर रहे है. डर वहां होता है जहाँ लालच होता है और आपसे क्या पाने का लालच है कि मैं डरूंगा. आपका सद्ज्ञान मै इसी ब्लाग पर देख चूका हूँ. आपका सदव्यवहार देख ही रहा हूँ. इन दोनों में से कुछ भी मुझ नाचीज के लेने लायक नहीं है. मै चमचा बन के जीने के लिए पैदा नहीं हुआ हूँ. वो भी आप जैसी महान आत्मा का चमचा.

'मुझे ही नहीं, आदरणीय अनुज महोदय, आपके आचरण और व्यवहार से पूरे प्रबन्धन को कष्ट हुआ करता है'

बेकार इस मामले में आप पूरे मंच की आड़ ले रहे हैं यह मेरा और आपका व्यक्तिगत मामला है. ये मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि आप को मुझसे व्यक्तिगत खुन्नस है.

मेरी आड़ लेकर सारे सदस्यों पर चीखना-चिल्लाना धमकाना OBO जैसे लोकतान्त्रिक साहित्यिक मंच की संस्कृति के अनुरूप नहीं है. इसे फासीवादी साहित्यिक संस्कृति कहते हैं.

'जो उच्छृंखल आचरण के साथ पटल की चर्चाओं और रचनाओं में बकवाद की छौंक लगाया करते हैं.'

सिर्फ इसी ब्लाग को देखा जाए तो पता चल जाएगा की किसका आचरण उच्छृंखल और बकबादी रहा है.

नम्रता छोटों की ही मजबूरी नहीं होती मान्यवर ! सबसे पहले बड़ों को इसे आचरण में उतार कर दिखाना पड़ता है.

'समरस माहौल बनाते हुए..'  'विष्टा डालने राक्षस...'

क्या समरसता है! और कितने सुंदर शब्दों से आप इस मंच को सजा रहे है!! आप कितने भद्र है आपकी भद्रता को प्रणाम !!!

'आगे से आपको समझाना और अगाह नहीं करना पड़ेगा.'

आपके डराए से मैं डर तो सका नहीं और आप जैसे समझदार के समझाए से समझ भी नहीं सकूंगा और आपकी आगही इतने ऊंचे दर्जे की है कि मैं आगाह भी नहीं हो सकूंगा.

इस तरह से डराने धमकाने और गाली-गलौज करने के बेहतर है आप सर्वसमर्थ हैं मेरी सदस्यता रद्द करें. किस्सा ख़त्म ! 

जाहिर सी बात है इस चीज से आप से ज्यादा आप ज्यादा प्रसन्नता किसी और को नहीं होगी.

और जाहिर सी बात है अब मुझे भी इस में प्रसन्नता होगी.

'आपकी समझ को शीघ्र प्रणाम किया जायेगा.'

प्रणाम करने के लिए धमकी देने की जरूरत नहीं होती सिर्फ आपने हाथ जोड़ने की जरूरत होती है.

प्रणाम !!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2016 at 6:04pm

आदरणीय बृजेश भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2016 at 6:04pm

आदरणीय अनुज भाई, आ. सौरभ भाई जी की बात को और आगे बढ़ाते हुये मै ये और कहना चाहता हूँ , कि '' ओ बी ओ एक आत्मीय सम्बन्धों का परिवार है महज़ एक साहित्यिक साइट ही नही है । यहाँ सभी एक दूसरे से सीखते हैं और सिखाते भी हैं , लेकिन वार्तालाप हमेशा आत्मीय और मर्यादा की सीमाओं मे ही होता है । और अब कुछ रू बरू मुलाकातों के बाद तो मै ये भी कह सकता हूँ कि मुलाकात होने पर भी उन्हीं आत्मीय सम्बन्धों को हम व्यवहारिक रूप मे भी पाते हैं । इन्ही आत्मीय व्यवहार की आशा हम न केवल आपसे वरन सभी ओ बी ओ परिवार के सदस्यों से करते हैं । आशा है आप इस अहम बिन्दु का खयाल रखेंगे और सीखने सिखाने की इस परंपरा में अपना अमूल्य सहयोग देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और विस्तार से सुझाव के लिए आभार। इंगित…"
53 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आ. बृजेश ब्रज जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाई स्वीकार करें.मतले के ऊला में ये सर्द रात, हवाएं…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'

बह्र-ए-मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफमुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन1212  1122  1212  112/22ये सर्द…See More
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपके सकारात्मक प्रयास के लिए हार्दिक बधाई  आपकी इस प्रस्तुति पर कुछेक…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपने, आदरणीय, मेरे उपर्युक्त कहे को देखा तो है, किंतु पूरी तरह से पढ़ा नहीं है। आप उसे धारे-धीरे…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"बूढ़े न होने दें, बुजुर्ग भले ही हो जाएं। 😂"
18 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. सौरभ सर,अजय जी ने उर्दू शब्दों की बात की थी इसीलिए मैंने उर्दू की बात कही.मैं जितना आग्रही उर्दू…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय, धन्यवाद.  अन्यान्य बिन्दुओं पर फिर कभी. किन्तु निम्नलिखित कथ्य के प्रति अवश्य आपज्का…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश जी,    ऐसी कोई विवशता उर्दू शब्दों को लेकर हिंदी के साथ ही क्यों है ? उर्दू…"
19 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मेरा सोचना है कि एक सामान्य शायर साहित्य में शामिल होने के लिए ग़ज़ल नहीं कहता है। जब उसके लिए कुछ…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service