For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाम रे (व्यंग कविता)

शहर के इस जाम में
पत्नी को बाइक पे टांग के
मैं जा रहा था काम से
तभी अचानक एक विक्रेता
बोला सीना तान के
छांट बीनकर माल खरीदो
बेंचू मैं कम दाम में
मैंने बोला भीड़ बहुत है
फिर आऊंगा आराम से
बोला दीदी कितनी सुंदर
उनके कुछ अरमान रे
तुम तो भइया बहुत काइयां
लगते कुछ शैतान रे
पहले बोलो क्यूं हो खोले
शॉप बीच मैदान में
हंसकर बोला खाकी वर्दी
साथ निभाए शान से
गाउन, मैक्सी,पर्स खरीदो
करते क्यूं परेशान रे
तभी अचानक नज़र पड़ गई
पत्नी की मुस्कान पे
पर्स मेरा सहला रही थी
अटकी उसकी जान से
उसकी मंशा समझ गया मैं
नही हुआ हैरान रे
खरीद के सामा घर आ गया
फिर रात कटी आराम से

(नीरज खरे)
(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 27, 2016 at 7:46pm

प्रिय नीरज .सच कहूं तो इस कविता रूपी कथा में  पंच कुछ हल्का है , बशर भारतीय ने इशारा  किया है . आशा है आगे अच्छी रचना पढने को मिलेगी . स्नेह .

Comment by Rahila on May 26, 2016 at 12:20pm
बहुत सुन्दर व्यंग्य ।
Comment by बशर भारतीय on May 26, 2016 at 11:09am
आ. नीरजजी निस्संदेह इस रचना पर आपने मेहनत की है मगर रचना कुछ बिखरी बिखरी लग रही है।
क्षमा सहित
Comment by NEERAJ KHARE on May 25, 2016 at 10:50pm
आदरणीया भट्ट जी आपको व्यंग रचना पसंद आई। बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 25, 2016 at 9:20pm

सुंदर व्यंग हुआ है आदरणीय | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

AMAN SINHA posted blog posts
2 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: सही सही बता है क्या

1212 1212सही सही बता है क्याभला है क्या बुरा है क्यान इश्क़ है न चारागरतो दर्द की दवा है क्यालहू सा…See More
2 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
दिनेश कुमार posted blog posts
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन अभिवादन व हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी. सादर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुन्दर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
" आदरणीय अशोक जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"  कोई  बे-रंग  रह नहीं सकता होता  ऐसा कमाल  होली का...वाह.. इस सुन्दर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-161
"बहुत सुन्दर दोहावली.. हार्दिक बधाई आदरणीय "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service