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22-22-22-22-22-22-222
मेरे शब्दों को तुम अपनी ख़ुश्बू सा महका दो तो।
मेरे छंदों को तुम अपनी पायल सा खनका दो तो।।

ये जो मनमोहक सी तेरी चाल में इक चञ्चलता है।
अधरों से छू कर ग़ज़लों को, हिरनी ज़रा बना दो तो।।

रेशम सी आवाज़ का ज़ादू, इन भावों में जगा ज़रा।
सुर सरगम का गहना इनको, प्रिये आज पहना दो तो।।

हर्फ़ बिछे हैं कागज़ पर सब, प्राण हीन तन के जैसे।
इन काली रेखाओं को भी, ज़िंदा आज बना दो तो।।

क्यों कहती हो प्रीत नहीं जब, झूठ बोलना नहीं पता।
अपनी आँखों की भाषा का, भाव आज समझा दो तो।।

मौलिक-अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 27, 2016 at 4:00pm
आदरणीय नरेंद्र सर, सादर धन्यवाद
Comment by Sushil Sarna on April 26, 2016 at 4:22pm
मेरे शब्दों को तुम अपनी ख़ुश्बू सा महका दो तो।

मेरे छंदों को तुम अपनी पायल सा खनका दो तो।।

वाह बहुत सुंदर आदरणीय पंकज जी ... खूबसूरत अशआर वाली इस ग़ज़ल ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Shyam Narain Verma on April 26, 2016 at 2:44pm
बहुत बढ़िया ग़ज़ल बधाई आपको ।
Comment by मनोज अहसास on April 26, 2016 at 2:13pm
बहुत खूब
Comment by narendrasinh chauhan on April 26, 2016 at 1:46pm

खूब सूरत ग़ज़ल के लिए बधाई कुबूल करे

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