For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ...चार दीवारें भी हों छतों के लिये

212   212    212    212

चार दीवारें भी हों छतों के लिये

और क्या चाहिये मुफलिसों के लिये

महफिलें भूख की हो रहीं हैं ज़बां
है सियासत मगर रहबरों के लिये

अत्ड़ियाँ पेट की घुटनों से मिल गईं 
अब कहाँ तक झुकें रहमतों के लिये

जिन दरख्तों तले पल रहा आदमी 
प्यार की हो नमी उन जड़ों के लिये 

लाख ​दौलत अकूबत है हासिल जिन्हें  ​

वो तरसते ​मिले ​कहकहों के लिये

ठोकरें नफरतें झिड़कियों के सिवा
और रक्खा है क्या हरिजनों के लिये

बन्द कर लो भले दर दरीचा मगर
​है ​झरोंखा जरुरी घरों के लिये

​(मौलिक एवं अप्रकाशित )​

​©बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 630

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2016 at 9:40am

ह्रदय से अभिनन्दन वन्दन आदरणीय  धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2016 at 9:39am

आपके अमूल्य समय....स्नेह के लिए हार्दिक अभिनन्दन वन्दन आदरणीय  मिथिलेश वामनकर जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2016 at 9:36am

रचना पटल पे आपका स्वागत एवं आभार आदरणीया  rajesh kumari जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2016 at 9:34am

आदरणीय गुरुदेव  गिरिराज भंडारी जी आपके सुझाव सर्वथा उचित हैं विस्तृत समीक्षा एवं मार्गदर्शन के लिए सदैव आभारी रहूँगा स्नेह बनाए रखें ..

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 27, 2016 at 10:34pm

अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय बृजेश जी, दद कुबूल करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2016 at 11:11pm

आदरणीय बृजेश जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. बाकी गुनीजनों द्वारा मार्गदर्शन किया गया है उस पर अवश्य गौर कीजियेगा.

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 26, 2016 at 9:43pm

रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय  Ravi Shukla जी...आपके समय आपके स्नेह एवं विस्तृत समीक्षा से लिखना सफल हुआ...इन पँक्तियों में सिर्फ एक कटाक्ष किया है...जिस तरह आज राजनितिक पार्टियाँ दलितमय हो रहीं हैं अपने सभी कर्मों को दलित का चोला ओढ़ा रहे हैं बस उसी को उजागर करने की कोशिश की है आगे आप जो आदेश दें ...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 26, 2016 at 9:34pm

रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय  Samar kabeer जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 26, 2016 at 3:19pm

वाह्ह बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है  बृजेश जी  दिल से बधाई  लीजिये |आ० गिरिराज जी ने सही इस्स्लाह  दी  है|  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 25, 2016 at 8:15pm

आ. बृजेश भाई , अच्छी गज़ल कही है दिली बधाइयाँ स्वीकार करे । कुछ टंकण की गलतिया हैं सुधार लीजियेगा ।

लाख दौलत अकूबत मुबारक उन्हें    --   इस मिसरे को ऐसे कहें --  लाख दौलत अकूबत है हासिल जिन्हें
वो तरसते मगर कहकहों के लिये                                              वो तरसते मिले कहकहों के लिये     

अगर सही लगे तो ?   

इक झरोंखा जरुरी घरों के लिये     --   इस मिसरे में -- है - की कमी लग रही है  , ऐसे कर लें -  है झरोंखा जरुरी घरों के लिये                         

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
5 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
9 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service