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ग़ज़ल कहीं राधा कहीं मीरा कहीं पे श्याम के चर्चे

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हमें अब याद आते हैं सुहानी शाम के चर्चे
तुम्हारी बज़्म की बातें तुम्हारे नाम के चर्चे

सदायें ये मुहब्बत की दिशायें गुनगुनायेंगी
कहीं राधा कहीं मीरा कहीं पे श्याम के चर्चे

लिये बैठा हूँ नम आँखें अधूरा प्यार का किस्सा 

कभी मजनू कभी राँझे कभी खय्याम के चर्चे

किसी ने राग जो छेड़ा घुली खुशबू हवाओं में

दुआओं में महक जाते दिले गुमनाम के चर्चे

जलाये जा रहा कोई दिया दिल के दरीचे में
जिगर पे ज़ख्म भी खाये हुये अन्जाम के चर्चे

नहीं है भूलना मुमकिन जुदाई का वो अफ़साना 
सुनाई दे रहे हर सिम्त सूनी बाम के चर्चे

यही तो बात ऐसी है जुदा हस्ती हमारी में
वहाँ हक्काम की बातें यहाँ पे आम के चर्चे

मौलिक एवं अप्रकाशित 

©बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 923

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 5, 2016 at 10:22pm

सुन्दर शब्दों में उत्साहवर्धन के लिए आपका धन्यवाद आदरणीया सीमा शर्मा मेरठी जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 5, 2016 at 10:20pm

उत्साहवर्धन के लिए आपका धन्यवाद आदरणीय narendrasinh chauhan जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 5, 2016 at 10:17pm

आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय  laxman dhami जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 5, 2016 at 10:16pm

रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 5, 2016 at 10:15pm

रचना पटल पे आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय  Manoj kumar Ahsaas जी 

Comment by सीमा शर्मा मेरठी on April 5, 2016 at 12:51pm
बहुत खूबसूरत अशार सभी अशआर लजवाब ख़ास तौर पर हीर राँझा और राधा वाला खूबसूरत
Comment by narendrasinh chauhan on April 5, 2016 at 11:20am

खूब सुन्दर रचना 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2016 at 11:05am

इस सूंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2016 at 9:43am

बहुत बढ़िया ब्रज जी  आपने बहुत अच्छी गजल कही 

Comment by मनोज अहसास on April 5, 2016 at 6:54am
बहुत खूब आदरणीय

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