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कविता : लोकतंत्र का क्रिकेट

बड़ा अजीब खेल है लोकतंत्र का क्रिकेट
एक गेंद के पीछे ग्यारह सौ मिलियन लोग
उछल कर, गिर कर
झपट कर, लिपट कर
पकड़नी पड़ती है गेंद
कभी जमीन से, कभी आसमान से
जिसकी किस्मत अच्छी हो उसी को मिलती है गेंद

और बल्लेबाज
उसे तो मजा आता है क्षेत्र रक्षकों को छकाने में
अगर किसी तरह सबने मिलकर
बल्लेबाज को आउट कर भी दिया
तो फिर वैसा ही नया बल्लेबाज
उसका भी लक्ष्य वही
अगर पूरी टीम आउट हो गई
तो दूसरी टीम के बल्लेबाजों का भी लक्ष्य वही
सबसे ज्यादा पैसा है इस खेल में

इसीलिए तो क्रिकेट मेरे देश का धर्म है
जिसे देखना हर भारतवासी का कर्म है
क्यूँकि पता नहीं कब
किसी को ये उपाय सूझ जाए
कि कैसे हर खिलाड़ी के हिस्से में
कम से कम एक गेंद आए

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Comment

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Comment by satish mapatpuri on April 28, 2011 at 3:59pm

वाह धर्मेन्द्र भाई वाह.लाजवाब,शानदार,उत्कृष्ट.बधाई हो.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2011 at 1:15pm
इशारों को अगर समझा सही तो राज़ नहीं कुछ रह गया है.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 28, 2011 at 10:29am
धर्मेन्द्र भाई , यदि एक शब्द इस रचना के लिए लिखना हो तो मैं लिखूंगा "शानदार" बड़ी ही कुशलता से लेखक ने वो सारी बातें कह दी है जो वो कहना चाहता है | सुंदर काव्य कृत पर बधाई धर्मेन्द्र भाई |

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