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रात का सन्नाटा' मुझपे मुस्कुराया देर तक
हाथ पर उनको लिखा लिखके मिटाया देर तक

आज ऐसा क्या हुआ क्या साजिशें हैं शाम की
आरजू जिसकी नहीं वो याद आया देर तक

उल्फतें हैं हसरतें हैं और ये दीवानगी
नाम तेरा होंठ पे रख बुदबुदाया देर तक

है अज़ब मंज़र वफ़ा की रहगुज़र में आजकल
चाहतें उस शख्स की जिसने रुलाया देर तक

.

कुछ पलों की जुस्तजू वो कुछ पलों की तिश्नगी
प्यार का गमगीं तराना गुनगुनाया देर तक

था बड़ा मगरूर वो हम भी गुमां रखते बहुत
आग पे अरमां रखे औ फिर जलाया देर तक
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
©बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 1070

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Comment by मनोज अहसास on March 8, 2016 at 11:28pm
बहुत खूब
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 8, 2016 at 11:01pm

//उल्फतें हैं हसरतें हैं और ये दीवानगी
नाम तेरा होंठ पे रख बुदबुदाया देर तक//   बेहतरीन गज़ल के लिये दाद कुबूल करें.  आ० बृजेश भाई जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 8, 2016 at 6:56pm

आपके स्नेहमई शब्दों से अतिप्रसन्नता की अनुभूति हुई आदरणीय Sushil Sarna जी हार्दिक धन्यवाद संग नमन ...

Comment by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 5:49pm

रात का सन्नाटा' मुझपे मुस्कुराया देर तक

हाथ पर उनको लिखा लिखके मिटाया देर तक


आज ऐसा क्या हुआ क्या साजिशें हैं शाम की

..... आरजू जिसकी नहीं वो याद आया देर तकवाआआह आदरणीय बृजेश जी वाह बड़े ही खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने इस ग़ज़ल में। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं।

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