अपनी मांग को लेकर एक समुदाय के लोग शांति से आंदोलन कर रहे थे। अचानक आंदोलन ने उग्र रूप लिया। अन्य समुदायों से झड़पें हुई। मारा-मारी हुई। छोटी-बड़ी सड़कें बन्द। लूट-पाट शुरू। यह सब ऎसे चला की मारा-मारी में हुई झड़पों में कइयों की जानें भी गई।
एक पत्रकार मांग को लेकर आंदोलन कर रहे समुदाय के बड़े नेता से
-यह जो हो रहा है, क्या यह सब ठीक है?
-जब चारों तरफ आगजनी हो, मारा-मारी हो, सब अपने ही लोग अपनों को मारने पर तुले हों, जनता हालातों से तंग आ गई हो तो कुछ ठीक कहा जा सकता है? यह बहुत ही दुखद है। ऐसी स्थिती नहीं बननी चाहिए। मैं सबसे शान्ति बनाए रखने की हाथ जोड़ कर अपील करता हूँ।
-अपील के साथ-साथ आप उन लोगों के बीच में जाकर उन्हें समझाएंगे तो वे ज़रूर मानेंगे। आपने ऐसा कुछ सोचा है?
-हाँ कल से ही मैं राज्य में शांति स्थापना की कामना के लिए अनिश्चित कालीन उपवास शुरू करने वाला हूँ। ईश्वर जल्द ही सब ठीक करेंगे।
-मगर आप भी तो कुुछ.....।
-आप लोग ऐसी घड़ी में भी लोगों तक हमारा सन्देश पहुँचा रहे हैं बहुत-बहुत धन्यवाद आपका। हमें उपवास की तैयारी करनी है। नमस्कार।
नेताजी ने पत्रकार की बात काटकर बातचीत का समापन कर उसे विदा किया।
फोन पर
-अरे! उस **** के इलाके में तो पूरी शान्ति है। अपने बन्दों को लेकर जाओ वहां उपद्रव होगा तो ही अपना फायदा होगा। नेता बना फिरता है स्साला। बिठाओ प्रोग्राम। पता चले।
-पर थोड़ी देर पहले उस पत्रकार को तो शान्ति स्थापना करवाने के लिए...
पास बैठे एक समर्थक ने संशय प्रकट करने की कोशिश की।
-अब इस बावले को क्या समझाऊँ कि नेतागिरी, अभिनेतागिरी बिना है ही क्या.।
बड़बड़ाते हुए नेताजी उसकी तरफ मुस्करा भर दिए।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Comment
बेहतरीन समापन पंक्तियों और शीर्षक के साथ हक़ीक़त का बढ़िया चित्रण। जन-जागरूकता हेतु, विचारोत्तेजक। हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर कुमार राणा साहिब।
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