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ज़रूरतें,अपनी-अपनी(लघुकथा)

शूटिंग की तैयारी थी।सेट लग चुका था, बस निर्देशक महोदय के आने की प्रतीक्षा थी। उनके आते ही सब सचेत हो उठे।
“सब रेडी है?”आते ही अपने असिस्टेंट से पूछा।
“जी सर!” उसने मुस्तैदी से उत्तर दिया।
“एक बार सीन ब्रीफ करो।”
“जी, सीन है, माँ-बाप का लाड़ला बेटा रूठ गया है, तो माता पिता तरह-तरह की खाने पीने की चीज़े लाकर उसको मना रहे हैं और बच्चा गुस्से में फेंक रहा है।”
“और वो बाल कलाकार उसका क्या हुआ? अस्पताल से छुट्टी मिल गई ?”
“नहीं सर,पर दूसरे बच्चे का इंतजाम कर लिया है, यहीं पास की बस्ती से अरेंज किया है। सिर्फ दो सीन हैं बच्चे के। दो सौ रुपए रोज़ पर बुलाया है।”
“काम कर सकेगा?”
“जी सर, मैंने सब समझ दिया है।’
“ओके! चलो फिर, लाइट, कैमरा… एक्शन!
“कट, कट, कट!”
“हाथ से रखना नहीं है, उठाकर फेंकना हैं,” असिस्टेंट ने झुंझलाहट काबू करते हुए कहा, “पहले केक और पेस्ट्री हाथ मार कर दूर गिराओ, फिर दूध का गिलास गिरा दो। ठीक?”
“चलो, फिर से,” डायरेक्टर ने खीज के कहा, “एक्शन!”
“ओहो! कट! कट! कट! अबे तुझको समझाया था ना? फेंक दे, नीचे गिरा दे! ये इतना संभाल कर क्यों रख रहा है?”
बच्चे ने सुबकते हुए कहा, “उन अंकल ने कहा था शूटिंग के बाद खाने का सारा सामान मैं घर ले जा सकता हूँ।”
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Seema Singh on February 26, 2016 at 9:08am
आभार आप सभी का,प्रतिभा दीदी,राहिला जी,नीता जी,मनन जी एवं शहज़ाद भाई।
Comment by pratibha pande on February 22, 2016 at 1:02pm

  बहुत अच्छी रचना , कहीं मिन्नतें और कहीं  लाचारी , सधे हुए ढंग से कथ्य संप्रेषित हुआ है ,बधाई सीमा जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 22, 2016 at 12:57pm
'बड़े' होते 'बच्चे' के मनोविज्ञान को ही नहीं बल्कि एक वर्ग विशेष के सार्थक मनोविज्ञान को बख़ूबी प्रतिबिम्बित करती बेहतरीन रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया सीमा सिंह जी।
Comment by Nita Kasar on February 20, 2016 at 2:43pm
बच्चा क्या जाने उसे बहलाकर काम निकाला जा रहा है ।उसे यही पता है सब सामान घर ले जा सकता है ।बाल मन की व्यथा की प्रस्तुति के लिये बधाई आद०सीमा सिंह जी ।
Comment by Manan Kumar singh on February 19, 2016 at 5:11pm
अच्छा चित्रण
Comment by Rahila on February 19, 2016 at 4:09pm
ओह...बहुत अच्छी प्रस्तुति आदरणीया सीमा जी!पढ़कर उस बच्चे की मनोदशा आंखों में झूल गई । सादर बधाई

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