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रुक गई बहती नदी (नवगीत)

काम सारे

ख़त्म करके

रुक गई बहती नदी

ओढ़ कर

कुहरे की चादर

देर तक सोती रही

 

सूर्य बाबा

उठ सवेरे

हाथ मुँह धो आ गये

जो दिखा उनको

उसी से

चाय माँगे जा रहे

 

धूप कमरे में घुसी

तो हड़बड़ाकर

उठ गई

 

गर्म होते

सूर्य बाबा ने

कहा कुछ धूप से

धूप तो

सब जानती थी

गुदगुदा आई उसे

 

उठ गई

झटपट नहाकर

वो रसोई में घुसी

 

चाय पीकर

सूर्य बाबा ने कहा

जीती रहो

खाईयाँ

दो पर्वतों के बीच की

सीती रहो

 

मुस्कुरा चंचल नदी

सबको जगाने चल पड़ी

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 14, 2016 at 11:05am

इस मुखर अनुमोदन के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय सौरभ जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2016 at 1:44am

इस नवगीत का आत्मविश्वास आदरणीय धर्मेन्द्रजी, मुग्ध कर रहा है ! मन वस्तुतः सुखानुभूति में डोल रहा है ! 

काम सारे / ख़त्म करके / रुक गई बहती नदी / ओढ़ कर / कुहरे की चादर / देर तक सोती रही /..

क्या बात है, आदरणीय ! क्या बात है !

प्रकृति का मानवीकरण यों तो आंग्ल साहित्य के रोमाण्टिसिज्म वाले दौर की याद दिलाता है. ये कवायद भी तभी की मानी जाती है. लेकिन हम मेघदूत को कैसे बिसर सकते हैं ? लेकिन यह अपने पद्य-इतिहास में आया आंग्ल साहित्य से ही माना गया है. फिर, बिना तनिक बदलाव के छायावादोत्तर काल तक बना रहा. लेकिन, सही कहिये तो यह गया कहीं नहीं है. बल्कि आज भी बदस्तूर बना हुआ है. तनिक रूप बदल के ! आपका प्रस्तुत नवगीत मेरे कहे की हामी भरता है. तार्किक रूप से समृद्ध और शैल्पिक ढंग से सुगढ़ प्रतीत हो रहे इस नवगीत केलिए हार्दिक बधाई. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 12:47pm
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब उस्मानी साहब
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 5, 2016 at 12:23pm
सुबह/कुहरे की चादर/नदी/धूप/स्नान और सूर्य बाबा की बढ़िया "चाय"... सब ने कई अर्थ सम्प्रेषित कर शब्दों की लय को तालबद्ध कर जो समां बाँधा है, उसे केवल महसूस किया जा सकता है। तहे दिल बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 10:28am
शुक्रिया आदरणीया कान्ता जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 10:26am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सतविंदर जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 10:26am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 10:25am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज वीर जी
Comment by kanta roy on February 4, 2016 at 11:45pm

वाह ! बेहद खूबसूरत रचना की प्रस्तुति हुई है आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी।  बधाई प्रेषित है। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 4, 2016 at 5:34pm
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति हुई है आदरणीय धर्मेन्द्र जी।हार्दिक बधाई।

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