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ग़ज़ल-नूर --अपने अहसास दर-ब-दर रखते,

ग़ज़ल 
२१२२/१२१२/२२ (११२)
.
अपने अहसास दर-ब-दर रखते,
उन से उम्मीद हम अगर रखते.
.
कौन आता यहाँ, जो पूछता ‘वो’,
चाँद तारों में हम भी घर रखते.
.
नींद आती जो रात भर के लिए,
उन को ख़्वाबों में रात भर रखते.
.   
जंग से क़ब्ल हार जाते हम,  
दिल में ज़ालिम का हम जो डर रखते
.
वो ख़ुदा ही मिला नहीं हम को,
जिस के क़दमों पे अपना सर रखते.
.
मुख़बिरी करते थे ज़माने की,
काश ख़ुद की भी कुछ ख़बर रखते.
.
छोड़ देते शराब कब की हम
तुम निगाहों में वो असर रखते!
.
निलेश "नूर" 
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 740

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2015 at 7:28pm

शुक्रिया आ. मिथिलेश भाई... मिस करता हूँ आप सब को ..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2015 at 7:27pm

शुक्रिया आ. समर सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2015 at 7:27pm

शुक्रिया आ. नीरज कुमार नीर जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 24, 2015 at 7:27pm

शुक्रिया आ. उस्मानी साहब 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 24, 2015 at 11:03am

क्या बात है , नीलेश भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by narendrasinh chauhan on December 23, 2015 at 7:49pm

एक अच्छी ग़ज़ल पर वाह वाह 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 23, 2015 at 7:09pm

मुख़बिरी करते थे ज़माने की, 
काश ख़ुद की भी कुछ ख़बर रखते.
.
छोड़ देते शराब कब की हम 
तुम निगाहों में वो असर रखते!

वाह वाह आ० नीलेश जी बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़ल आई मगर दिल खुश हो गया पढ़ के दिल से दाद कुबूलें 

Comment by Ravi Shukla on December 23, 2015 at 12:53pm
आदरणीय निलेश जी बहुत ही शनदार अशआर पेश किये है आपने हर शेर सुन्‍दर बधाई कुबूल करें
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 22, 2015 at 5:30pm
मुख़बिरी करते थे ज़माने की,
काश ख़ुद की भी कुछ ख़बर रखते.



एक उम्दा ग़ज़ल के इस संजीदा शेर पर सलाम क़ुबूल फरमायें

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 22, 2015 at 12:22am

वाह वाह वाह ! 

कम शब्दों में क़ामयाब ग़ज़ल हुई है. क्या तेवर और क्या अंदाज़ !  वाह !!

दिली दाद कीजिये. आदरणीय नीलेश भाईजी. 

वो ख़ुदा ही मिला नहीं हम को,
जिस के क़दमों पे अपना सर रखते. 

वो ख़ुदा ही नहीं मिला हम को,
जिस के क़दमों पे अपना सर रखते. .......... है न ?

एक अच्छी ग़ज़ल पर वाह वाह 

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