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जीवन नमकीन पानी से बनता है (कविता)

भावनाएँ साफ पानी से बनती हैं

तर्क पौष्टिक भोजन से

 

भूखे प्यासे इंसान के पास

न भावनाएँ होती हैं न तर्क

 

कहते हैं जल ही जीवन है

क्योंकि जीवन भावनाओं से बनता है

तर्क से किताबें बनती हैं

 

पत्थर भी पानी पीता है

लेकिन पत्थर रोता बहुत कम है

किन्तु जब पत्थर रोता है तो मीठे पानी के सोते फूट पड़ते हैं

 

प्लास्टिक पानी नहीं पीता

इसलिए प्लास्टिक रो नहीं पाता

हाँ वो ठहाका मारकर हँसता जरूर है

 

पानी शरीर से कभी अकेला नहीं निकलता

वो अपने साथ नमक भी ले जाता है

 

मैं पानी बहुत पीता हूँ

इसलिए मेरे शरीर में अक्सर नमक की कमी हो जाती है

नमक अकेला तो खाया नहीं जा सकता

इसलिए मैं काली चाय की चुस्की के साथ

चुटकी भर नमक खाता हूँ

 

नमक खट्टी और मीठी

दोनों यादों में घुल जाता है

 

नमक और पानी

भौतिक अवस्था और रासायनिक संरचना के आधार पर

बिल्कुल अलग अलग पदार्थ हैं

दोनों को बनाने वाले परमाणु अलग अलग हैं

नमक के परमाणु एक इलेक्ट्रान का लेन देन करते हैं

पानी के परमाणु एक इलेक्ट्रान का साझा करते हैं

फिर भी दोनों एक दूसरे में ऐसे घुल मिल जाते हैं

कि जीभ पर न रखें तो पता ही न चले

 

मिठास पर पलते हैं इंसानियत के दुश्मन

नमकीन पानी नष्ट कर देता है

इंसानियत के दुश्मनों को

 

ज़्यादा पानी और ज़्यादा नमक

शरीर बाहर निकाल देता है

पर मीठा शरीर के भीतर इकट्ठा होता रहता है

पहले चर्बी बनकर फिर ज़हर बनकर

 

पहली बार जीवन नमकीन पानी में बना था

इसलिए जीवन अब हमेशा नमकीन पानी से बनता है

------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 9, 2015 at 11:25am

आ० भाई धर्मेन्द्र कुमार जी इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक अढ़ाई l

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 9, 2015 at 11:21am
पहली बार रसायन विज्ञान से ओतप्रोत सार्थक सटीक ऐसा काव्य पढ़ने को मिला जिसमें तर्कसंगत गहराई है। लेकिन इन अंतिम पंक्तियों में तो ग़ज़ब के भाव पिरो दिये हैं आपने --
****मिठास पर पलते हैं इंसानियत के दुश्मन
नमकीन पानी नष्ट कर देता है
इंसानियत के दुश्मनों को

ज़्यादा पानी और ज़्यादा नमक
शरीर बाहर निकाल देता है
पर मीठा शरीर के भीतर इकट्ठा होता रहता है
पहले चर्बी बनकर फिर ज़हर बनकर

पहली बार जीवन नमकीन पानी में बना था
इसलिए जीवन अब हमेशा नमकीन पानी से बनता है *****
-- हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी।
------------------

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