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द्वार खोला तो महीनों बाद अमित को सामने पाकर वह चौंक उठी।
" आप ?"
" हाँ मैं, सोनिया को छोड़ आया हूँ। अब तुम्हारी कीमत का अहसास हो गया है मुझे ,सॉरी मेघा, अब घर लौट आया हूँ, प्लीज़ माफ़ कर दो मुझे "
" बेशक कर दूँगी ,पर एक बात का ईमानदारी से जवाब दीजिये ,अगर मैं आपको छोड़कर किसी और के पास चली गई होती,तो क्या मुझे सहर्ष स्वीकार कर लेते ? "
उसने असमंजस में मेघा की ओर देखा फिर दृष्टि झुकाते हुए बोला
" नहीं "
वेदना व हिकारत के मिले जुले भाव से पति के झुके हुए चेहरे को उसने देखा और द्वार बन्द कर लिया।

( मौलिक एवम अप्रकाशित )

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Comment by TEJ VEER SINGH on December 1, 2015 at 6:04pm

हार्दिक बधाई आदरणीय ज्योत्सना कपिल जी!गृहस्थ जीवन की विषमताओं पर करारा प्रहार करती बेहतरीन प्रस्तुति!बहुत सशक्त और मार्मिक लघुकथा!पुनः बधाई!

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 1, 2015 at 4:36pm
शीर्षक'फासले' को परिभाषित करती विचारोत्तेजक लघु कथा सृजन के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीया ज्योत्सना कपिल जी।

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"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
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