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राह में सबके लिए फूल सजाकर देखो

२१२२  ११२२  ११२२  २२

 

अपनी खुशियों पे नया रंग चढ़ाकर देखो

बंद पिंजरे के ये पंछी तो उड़ाकर देखो

 

मेरी आँखों से बहा जाता है आँसू बनकर

अपनी यादों में कभी खुद को जलाकर देखो

 

बात बन जायेगी बिगड़ी है जो सदियों से यहाँ

तुम ज़रा अपनी अना को तो झुकाकर देखो

 

सिर्फ बातों के सहारे न हवा में उड़ना

तुम हकीकत नज़र आज  मिलाकर देखो

 

तुमको हर नेकी के बदले में मिलेगी खुशियाँ

राह में सबके लिए फूल सजाकर देखो

 

मैंने यादों के बनाये हैं महल अपने कई

ख्वाब मेरे हैं इन्हें अपना बनाकर देखो

 

पास मेरे तो ज़खीरा है तेरी यादों का

तुम भी सोये हुये जज़्बात जगाकर देखो

 

   (मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by नादिर ख़ान on December 8, 2015 at 4:28pm

आदरणीय सौरभ सर रचना पर आपकी टिप्पणी और सलाह का बहुत बहुत शुक्रिया .... हमने संशोधन कर दिया है आगे भी स्नेह बनाये रखें ।
सादर ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2015 at 11:58pm

नादिर भाई, आपकी ग़ज़ल पर दाद कह रहा हूँ.  आदरणीय मिथिलेश भाई की सलाह सटीक लगी. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by नादिर ख़ान on November 25, 2015 at 7:57pm

हौसला अफजाई का शुक्रिया आदरणीय अजय कुमार साहब ....

Comment by Ajay Kumar Sharma on November 25, 2015 at 7:22pm

बेहतरीन गजल। ढेर सारी बधाइयाँ स्वीकार करें।

Comment by नादिर ख़ान on November 25, 2015 at 7:15pm

आदरणीय तेज वीर साहब आपको रचना  पसंद आई  लेखन सार्थक हुआ बहुत शुक्रिया आपका 

आभार ...

Comment by TEJ VEER SINGH on November 25, 2015 at 7:12pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नादिर खान साहब!मन के कोने कोने को छू कर गुजर गयी,आपकी यह प्रस्तुति!

बात बन जायेगी  बिगडी है जो सदियों से यहां,तुम ज़रा अपनी अना को तो झुका कर देखो!

सबसे बेहतरीन पंक्ति!

पुनः बधाई!

Comment by नादिर ख़ान on November 25, 2015 at 6:40pm

आदरणीय मिथिलेश  जी रचना को आपने सराहा आपका बहुत शुक्रिया ..

आपकी सलाह सर आँखों पर ....इन दो मिसरोन मे कौन स ज्यादा उपयुक्त लग रहा है कृपया मार्गदर्शन करें 

सिर्फ बातों के सहारे न हवा में उड़ना

तुम हकीकत से नज़र आज  मिलाकर देखो

तुम हकीकत से नज़र भी तो मिलाकर देखो 

सादर ...

Comment by नादिर ख़ान on November 25, 2015 at 6:18pm

आदरणीय सर्वोत्तम जी , आदरणीय श्याम नारायण जी एवं आदरणीय रवि शुक्ला  जी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया .....

Comment by Ravi Shukla on November 25, 2015 at 4:09pm
आदरणीय नादिर खान साहब बहुत ही खूब सूरत ग़ज़ल हुई है दिली दाद कुबिओल करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on November 25, 2015 at 2:43pm

 बेहतरीन रचना है दिली दाद हाज़िर है

 सादर ,

कृपया ध्यान दे...

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