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- अंधे - ( लघु कथा )

" माई ओ माई ! " चिल्लाते हुए श्यामू ने राम रत्ती को आवाज़ लगाई।
" क्या है रे ! आज़ कौन सा तीर मार लाया ?"
" ये ले माई !" तेल से भरा डिब्बा और चावल उरद की कच्ची खिचड़ी सामने रख दी।
" वाह , और पैसे ?"
" ये ले पूरे 86 रूपये हैं ।"
" बहुत खूब बेटा ! दस-पन्द्रह दिन तो खाने का अच्छा जुगाड़ हो गया।"

" माई ! एक बात मेरी समझ में नहीं आती ?"
" क्या ?" सामान सहेजती रामरत्ती ने नज़रें उठाई।
" सारे लोग अपनी अला-बला ज़ादू -टोना हर शनिवार को इन चीजों के रूप दान करते हैं ,तो हम बीमार नहीं हो जायेंगें ?"

"रे बुद्दू ! आज़ तक कुछ हुआ क्या ?"
"नहीं ."
" देख बेटा! ये दुनियाँ अगर अंध विश्वासी न हो तो हम जैसों का पेट कैसे पलेगा। हम तो उन्हीं की अला-बला से पनप रहें हैं।

"माई ! लोगों को ये बात समझ नहीं आती ?"
" न ही आये तो , हमारा भला है।"

"मेरी बात गांठ बांध ले ये आलतू-फ़ालतू चीज़े ना सोचना।जितना हम इनको बेवकूफ़ बना पाएंगें जीना आसान हो जायेगा।"

" माई! पढ़ने-लिखने का क्या फायदा,अगर सही - गलत न देखे?"

"बेटा ! इनके अंधे बनने में ही हम लोगों का भला है।"


मौलिक एवम् अप्रकाशित।

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Comment by Janki wahie on November 3, 2015 at 8:45am
सादर आभार विजय भाई आपका इतनी सार्थक और सुंदर टिप्पणी के लिए। ऐसे ही मनोबल बढ़ाते रहिये।नमन।
Comment by Janki wahie on November 3, 2015 at 8:43am
सादर आभार प्रतिभा जी।नमन।
Comment by Janki wahie on November 3, 2015 at 8:42am
आ. शहज़ाद जी आपकी सुंदर शैली में की गई टिप्पणी मन मोहक होती है। इस हौसला अफ़जाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
Comment by Janki wahie on November 3, 2015 at 8:39am
सादर आभार आ.मिथिलेश सर जी आपकी एक प्रशंन्सा और उत्तम लेखन कोप्रेरित करेगी।नमन।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 2, 2015 at 6:58pm
आपका बोलचाल की भाषा शैली में लघु-कथा लेखन ही सफलता का एक राज़ है। अंधविश्वास जैसे आम किन्तु गंभीर विषय पर एक अलग तरह के कथानक में कथ्य को उत्कृष्ट रचना में बखूबी समेटने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीया जानकी वाही जी । अंतिम पंक्ति में क्या अधिक सही रहेगा -- "अंधे बनने में" अथवा "अंधे बने रहने में" - कृपया विचार करें।
Comment by pratibha pande on November 2, 2015 at 5:34pm

आदरणीया  जानकी वाही जी ,वाह बहुत अच्छी कथा बुनी है आपने ,बधाई आपको 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on November 2, 2015 at 2:46pm

आदरणीया जानकी जी तीखा कटाक्ष करती शानदार लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई आपको इस प्रस्तुति पर 

Comment by Vijay Joshi on November 2, 2015 at 1:36pm
बहुत शानदार जानकी जी कितना मार्मिक वार्ता लाभ है। अंतिम लाइन कथा के बीच में भी रिपीट हो रही है। एक जगह से हटाई जा सकती है। कथा में परिवर्तन न होगा। कसाव बढ़ेगा।रचना का प्रवाह अच्छा है। उदेश्य पूर्ण कथा पर बधाई।
Comment by Janki wahie on November 2, 2015 at 1:30pm
तहे दिल से शुक्रिया राहिला बहुतअच्छा लगा तुम्हारी टिप्पणी पढ़क
Comment by Janki wahie on November 2, 2015 at 1:29pm
सादर आभार आ.तेज़ वीर सिंह जी।ओर्र आमोद श्रीवास्तव जी

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